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[कवि जान कृत जबहि क्यामखां चलि गये, मल्लू सुनी यह बात । हय गय दल बल साजिकै, मारन चल्यो रिसात ॥२०६॥ कोस वीसकै बीचसौ, आगै पाछै जांहि । मल्लू दबाइ न सकत है, वै जानत है नांहि ॥२०७।। जबहिं सुन्यौ यो क्यामखां, मल्लू चढ्यौ दल साज। फिरि अहुटौ सन्मुख चल्यौ, ज्यों तीतर पर बाज ॥२०८।। उत मल्लू इत क्यामखां, भये सनमुख आइ । करी घटा घंटा छटा, दुंदुभ गर्ज सुनाइ ॥२०॥ क्यामखां मल्लूखांसुं युद्ध करत है
॥ छंद अर्ध भुजंगी॥ चढ्यौ चाहुवानं, मच्यो घमसानं । छूट नाल गोली, बहै करा चोली ॥२१०॥
चपल बानं, चटकै कमानं । बहै सेल सागं, सु निकसै द्रुवागं ॥२११।। लगे सीस ससपर, परै धर मरै नर । बरै बरंमं भारी, सुजंम धर कटारी ।।२१२॥ हुई मार भार, सु जुझ जुझारं । लरै सुभट मनसौं, मिट्यौ हेत तनसौं ॥२१३॥ सु जोधा बिरच्चे, गये' ह किरच्चे। कहूं सिर कहूं धर, कहूं पग कहूं कर ॥२१४।। लरे बहुत · हस्ती, मरे सहित मस्ती। परे बहु तुरंगं, भयो अधिक जंगं ॥२१॥ परी धाम धूम, भई अरुन भूमं । सुभट घाव धूम, मनौ गैंद घूमं ॥२१६॥ मच्यो जुद्ध भारी, मलू सैन खारी। जित्यो क्यामखानं, सु जानत जहानं ॥२१७।।