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क्यामखां रासा]
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दौलतखां दीवांन तब, कीने गाढ़े पाइ। दुर्जन दलतें ना डुरे, रहे अचल ठहराइ ॥९४८॥ सवै पहारी येक है, घेरो कीनौ आइ । मेद चरन दीवांनके, डुरहि न लागे बाइ ।।९४९।। अपनै दलसौ यों कह्यौ, दौलतखां दीवांन । निकसि लरहु मारहु मरहु, करहु महा घमसांन ।।९५०॥ तव दल सवल दीवानके, निकसे लरन रिसाइ । नीकी जुध मचाइ के, घेरौ दयौ छिड़ाइ ॥१५॥ मरे पहारी जे लरे, उबरि गये जो भाजि । वहुरे दल दीवांनके, लै उनकी रज लाज ॥६५२।। साहिजहा बैठे तबहि, तखत दिलीके प्राइ। वात सुनी दीवांनकी, भले रह्यो ठहराइ ॥६५३॥ और न कोऊ ठाहर्यो, तजि तजि आये थांन । नगर कोट राख्यो भलै, दौलतखां चहुवांन ॥९५४॥ मनसव बढ़यो छत्रपति, दै के प्रादुर मांन । जग सगरे नामी भये, दौलतखां चहुवांन ॥६५॥ रहे चतुरदस बरस उत, साध्यो भलै पहार । पाछै कावलको चले, चाहुवांन मुछार ॥९५६।। काविल और पिसौरमै, रहे भली ही भांति । सीवाली सब मिल चले, सहि न सके मुखक्रांति ।।९५७।। बेटा दौलत खांनको, ताहरखांन सपूत । जुध खर्ग दामिन दमक, दानझरी पुरहूत ।।६५८।। साहिजहांसी मिलनको, गये अकबराबाद । प्यार कियो मनसब दीये, अति वाढ्यो अह्लाद ।।६५९॥ अमरसिघ गजसिंहको, हन्यो- सलाबत खांन । छत्रपतिकै दरबारमे, उपजि पर्यो घमसांन |९६०।।