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क्यामखां रासा ]
नगरोटे डेरे तलवार कै
|| दोहा || अलिफ खांन इतते चढ़े, उतते कटक पहार । लूमि भूमि आई मनौं, भादों घटा अपार ||८६६ ॥ भुजंगी छंद
कीये, जगतै दल बल साज । गोरवै, है चहुवांन सकाज ।।८६५||
पहली लराई
इतही क्यामखांनी, उतही सब पहारी । बनी सैन गज की, घटा पर बूद गोली, भयौ जुद्ध मनो कौध कौधा, बरच्छी
मेहकारी |
भारी |
दुधारी ||८६७||
रै जोध जोधा, भई
लगै वान
बानं, वजै
थकै नांहि
मारत, हनै
मिटे तब पहारी, भजे
परे टूक
मार
सार
बार
हार
टूकं, मरे सूर
ह्वै किरच्चे, बिरचे सुभट नां, भजे ह्वै
चीरं
मार ।
सारं ।
वारं ।
हारं ॥ ८६८ ||
बीर ।
सधीरं ।
अधीरं ।
गज
पहारी
सु ती रंच रंचक, करे ॥ सवईया ||
डनके ।
सतके रजके गज सैन बदै न झुकै न रुके रहै खां अलिफ बिरचि किरची कीये पै पहारी नहीं पग छांडनके । भये रंचक टूट गये उडि पौन रहे नजरावंन गांडनके | लह्यो ईसं न सीस न मास सियारहु ये न हडाहल हांडनके || ८७०।
चीरं ॥ ८६६||
७३
॥ दोहा ॥ जगतसिघ सब संग सौ, भाजि गयो तजि लाज ।
जैत भई दीवांनकी, पूजे मनसा काज || ८७१॥ दूर्ज दिन दल साजि कै, लगे पहारी आइ । जबहि पर्यो घमसांन घन, बहुरौ गयो पराइ ॥ ८७२ ॥