________________
कविवर जान और उनके ग्रन्थ
हांसी ऐसी और है, उत जो रावत जाई । इच्छा पूजे सूखित द्वै, हँसत खेलत घर श्राई । सेखमोहम्मद पीर हमारी, जाको नाम जगत उजियारौ। रोजो अपर बरसत नूर, करामात जग भई हजूर । ज्यारत करत फिरसते श्रावत, मनुपनुकी को बात सुनावत । नई नाही कछु होति आई, इनके कुलमें श्रादि बढ़ाइ ।
७० ग्रन्थोंकी संग्रह प्रति श्री कमलकुल श्रेष्ठके लेखानुसार इस प्रतिके पृष्ठोंकी लम्बाई-चौड़ाई ६४४ है । प्रारंभिक कुछ अंश प्राप्त नहीं हैं। बीच-बीचमें भी एकाध पृष्ठ गायव है । प्रति सं० १७७७-७८ में फतहचन्द ताराचन्द ढोढवाणिया द्वारा लिखित है । लिखावट स्पष्ट है । कहीं-कहीं कीडोंके खाने आदि कारणोंसे पढ़नेमें कठिनाई होती है । पहले यह एक जिल्दमे होगी अब सब पन्ने अलग-अलग हैं।
कमल कुलश्रेष्ठकी वर्गीकृत ग्रन्थ सूची १. छोटे-छोटे चरित्र काव्य २. मुक्तक शृङ्गारवर्णन काव्य ३. उपदेशात्मक काव्य ४. कोष ५. मिश्रित
इनमें छोटे छोटे चरित्र काव्योंको दो भागोंमें विभक्त किया गया है-प्रेम कहानियाँ क. स्वतन्त्र कहानियां । प्रेम कहानियाँ दो उपभागोंमें विभाजित की जा सकती हैं।
१. अविवाहिता नायिकासे प्रेम होने और प्रायः विवाहमें समाप्त होने वाली कहानियाँ। २. परकीया-प्रेम-मूलक कहानियाँ । पहले उपवर्गमें निम्न काव्य है
१. रतनावली, रचना संवत १६९१, मि. व. ७ (हि. सं. १०४४) छंद दोहा-चौपाई, विस्तार १७५ दोहे। ,
(प्रायः ७ चौपाइयोंके बाद १ दोहा आता है । इस प्रकार दोहोंकी संख्या दी गई है, उसके साथ चौपाइयोंकी संख्या भी जान लेनी चाहिए) __ यह अन्य ९ दिन में रचित है, प्रारंभिक ४४ दोहे इस प्रतिमें नहीं हैं।
२. लैला मजन, र. सं.१६९१, छन्द वही, पद्य ६५९ (बीकानेर अनूप सं. ला. प्रतिके अनुसार)
३. रतनमंजरी, र. सं. १६८६, छन्द वही, २६४ दोहे, प्रारंभके पचास (५०) दोहे अनुपलब्ध है।