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[कवि जान कृत पेस करी घोरी तुपक, बसे तलहटी प्राइ। इनहि साधि तबघन हटौ, नीकै मारयौ जाइ ॥७२७॥ उतहू मेव भले लरे, मरे परे है टूक । उपजी रौर पहारमैं, धार धारमें कूक ।।७२८॥ सगरै जंबू दीपमै, पुहंची है यह बात । अलिफखांन नीकी करी, पात पात मेवात ॥७२९।।
दच्छिनकौं बिदा भये बिदा कीये पतिसाहन, दच्छिनकी दीवांन । सहिजादै परवेज संग, दलको आइ न ग्यांन ॥७३०॥ पुंहचे जब बुरहानपुर, थाने बांटे सर्ब । तब मलिकापुर अलिफखां, लीनों रजवट गर्ब ॥७३१॥ सहिजादे चढ़ि आपहू, गये येदलाबाद । आगेको पठये कटक, चले लये मनबाद ॥७३२।। खांननि खां आपुन चढ़े, लोदी खांन जहान । अबदुल्लह जखमी चढ़े, और चढ़े बहु खांन ॥७३३॥ मानसिंघ कूरम चढ़े, राइसिंघ राठौर । काको काको नांव ल्यौ, चढ़े बहुत सिरमौर ॥७३४॥ अबर आयौ साजि दल, गनती आवै नांहि । ' जैसे बादर देखियें, अनगन अंबर मांहि ॥७३५।। येकल राईकी भली, अवदुल्लह सिरमौर । अंत चरन पै छुटि गये, ठाहर सके न ठौर ॥७३६।। अबदुल्लहके बिचरत, विचर भई दल मांहि । आये सब बुरहानपुर, कहूं रह्यो को नॉहि ॥७३७॥ थांने सबही उठि गये, रह्यौ नहीं को ठोरं। मलिकापुर बैठे रहे, अलिफखांनु सिरमौर ।।७३८।। सव मीतनि चिठी लिखी, तुम रहिहों किहि काज। पंच करै सो कीजिये, यामै कैसी लाज ॥७३६।।