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[कवि जान कृत येक भये उमराव सव, आपुनमै करि ांन । 'येक वोर इकईस है, येक वोर दीवांन ॥७०२॥ छटे गोली नाल वहु, फूटं हय गय मुंड। कूट कर करवार लै, टूट सुभटनि झुंड ॥७०३।। गज सेती गज लरत है, बजत सारसौ सार । सुभट सुभट लट पट भये, करत मार ही मार ॥७०४॥ इत उत कै मूये सुभट, साहस सत सधीर । बीच परे तब आइ के, आपुन सैख कबीर ॥७०५॥ कीनी सैख कबीरन, मनोहार दीवांन । पहले हाथ लगाइ अति, पाइ लगाये आंन ॥७०६।। येक लरचो इकईस सौं, करता रखी पटीठ । सबको भंजत अलिफखां, सैख न होत बसीठ ॥७०७॥ अलिफखांन उमराव. सब, करे तेग वरजेर । मालामै मनके बहुत, पै पूजत ना मेर ॥७०८॥ बहुरी येक मतो कियो, सबननि मिलि दीवांन । दलपति पर दल कर चढ़े, बजत जैत नीसांन ॥७०६।। भाठमै दलपति हुतौ, संग बहुत सरदार । उमंडे दल पतिसाहके, ज्यों घन घटा अपार ॥७१०॥ गोल चंदोल भये जब कोउ, जरंगोल वरंगोल । अलिफखानु दीवान तब, अपुन भयो हिरोल ॥७११॥ जबहि आइ सनमुख भये, अलिफखांनु सिरमौर । सही न हौंल हिरोलकी, भाजि चल्यो राठौर ॥७१२॥ दलनि दबायो जाइ के, तब दलपत बिललाइ । खांन जलाल मुछालसौं, पठयो यहै कहाइ ॥७१३॥ तुम मेरे भइया बड़े, और कहूं ही काहि । अलिफ खांन जू सौं कहौ, थांभै दल पतिसाहि ॥७१४॥ .