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क्यामखां रासा ]
लूनेंसेती यी कह्यो, जो तूं चढ्यौ तुपार | आई जो ग्रयो नहीं, तो रासिन्भ ग्रसवार ||५०५|| परधांननिको धके दे, काढ़े वाही वार । कह्यो बसीठ न मारिये, नांतर डारत मार ||५०६ ।। जबहि गये परधांन उठि, सोच भयो पुर मांहि । तब दौलतखां यों कह्यौ, वाके धर सिर नांहि ||५०७ ॥ लूनकरनकें ढिग गये, फीकै मुख परधांन । सकल बचन परगट करे, कहे जु दौलतखांन ||५०८ || लूनकरन सुनि रिस भर्यो, तब यह कर्यो विचार | आवत याकी मारिहै, पहले ढोसी मार ||५०६ ॥ उतते चढ़ि ढोसी गयो, दलबल लये अपार | यागे रहत पठांन है, लरे जुझार ॥५.१० ।। तुरक मान कीनी मदत, जॉनत सकल जहांन । हेंदू मारे खेत घर, भली पर्यो घमसांन ॥ ५.११ ॥ लूनकरन मार्यो उतहि, लूटि लयो सब साथ ।
नीके
तुरक सांन कवि जांन कहि, भले लगाये हाथ ||५१२ || पहले होते जो कह्यो, दौलतग्वां दीवान | सोई निवर्यो होइकै, अचल बचन चहुवान ।। ५.१३ || दौलतखां वांकी वली, नां को गंज ताहि । डांकी वाजे जैतकी, सांकी मानहि साहि ॥ ११४ ॥ बांक वांर्क हो बने, देखहुं जियहि विचार | जो बांकी करवार है, तो वाकी बार्कसां सूची मिले, तौ नाहिन ठहराइ । ज्यों कमान कवि जांन कहि, वानहि देत चन्ना ॥१६६॥ सुलतान वावरसुं दौलतखां मिल्यो
परवार ।।५१५।।
वावर काचिन्नते चल्यो, ढोली देसन चाहि । भैम्य कलंदरको कर्यो येक बाघ नंग ताहि ॥११७॥
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