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________________ आध्यात्मिक पत्र २९ [२७] कलकत्ता ९-४-१९६२ श्री सद्गुरुदेवाय नमः धर्मस्नेही शुद्धात्म सत्कार । ___आपका कार्ड व पत्र मिले । मानस्तम्भके शुभ प्रसंगपर भी मै वहाँ नही आ सकूँगा, इसका कारण पत्र के साथ भेजी गई शादीकी पत्रिकासे मालूम होगा। बड़े पुत्रकी शादी ता. १६-४ की है। पुण्यवानोको शुभप्रसंगका योग है, उन्हे अशुभप्रसंगपर बुलाना ठीक नही है। फिर भी लौकिक व्यवहारवश दो पत्रिकाएँ भिजवाई है। वहॉसे आये पश्चात् परिणति कीचड़मे ही फंसी रहती है, जैसी योग्यता है वैसे ही निमित्तो मध्ये रहना हो रहा है। प्रत्यक्ष दुःखसमूहमे वेदन चलता है, परन्तु एक ही झटकेमे हटना नही होता है । रस बिल्कुल नही है, खेद वर्तता है । फिर भी ईधरसे निवृत्तियोग नही बैठता; यह भी पूर्व कर्मोकी दैन ही है । अखण्डकी अखण्डताका प्रयास भी शिथिल-सा ही रहता है । हे गुरुदेव ! आपमें तीव्र भक्तिका उदय होनेसे ही इधरके दुःखका इलाज होगा, दूसरा कोई इलाज नहीं, यह भलीभाँति जानता हूँ। ____ अधिक क्या लिखू ? सोनगढ़की दयाका पात्र हूँ। आपके उलाहने सुनने योग्य हूँ। करीब एक माहसे कुछ शारीरिक अस्वस्थ्यता भी चल रही हे प्रभु ! शीघ्र इधरसे निवृत्ति होकर गुरुचरणोमे रहना होवे, जिन्होने अखण्ड गुरुवासमे चरना सिखाया है, यह ही विनती । आप सबसे क्षमाका इच्छुक व आपकी वात्सल्यताका आभारी । - निहालभाई
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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