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________________ प्रस्तावना -हार दोनोनयोकी दृष्टिको उनके समान ही साथ लेकर चला गया है। इन दोनो अध्यात्मनयोकी दृष्टि यद्यपि श्रीकुन्दकुन्दाचार्यके समयसारादि ग्रन्योमे पहलेसे सुरक्षित चली आती है परन्तु अमृतचन्द्राचार्यने उसे खूब उजाला है । अमृतचन्द्राचार्य की इस कथनशैली एव दृष्टिके अतिरिक्त तत्त्वानुशासनमे तात्विक तथा कुछ साहित्यिक अनुसरण भी पाया जाता है, जिसके दो नमूने इस प्रकार हैं - (१) सप्त तत्त्वोका हेयोपादेय रूपमे विभागीकरणउपादेयतया जीवोऽजीवो हेयतयोदितः । हेयस्यास्मिन्नुपादानहेतुत्त्वेनाऽऽसव स्मृतः ॥७॥ सवरो निर्जरा हेय-हान हेतु-तयोदिती। हेय-प्रहाणरूपेण मोक्षो जीवस्य दर्शितः ॥८॥ (तत्त्वार्थसार) बन्धो निबन्वनं चाऽस्य हेयमित्युपदशितम् । हेयस्याऽशेषदुःखस्य यस्माद्वीजमिदं द्वयम् ॥४॥ 'मोक्षस्तत्कारणं चैतदुपादेयमुदाहृतम् । उपादेय सुख यस्मादस्मादाविर्भविष्यति ॥शा (तत्त्वानुशासन) (२) निश्चय और व्यवहारके भेदसे मोक्षमार्गके दो भेद और उनमे साध्य-साधनता निश्चय-व्यवहाराच्या मोक्षमार्गो द्विधा स्मृतः। तत्राऽऽद्य साध्यरूप स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् ॥ (तत्त्वार्थसार) -मोक्षहेतु पुनधा निश्चयाद् व्यवहारतः । तत्राऽऽद्य साध्यरूप. स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् ॥ (तत्वानुशासन) ये दोनों नमूने अपने-अपने विषयमे स्पष्ट हैं और उनके लिए विशेष कुछ कहनेकी जरूरत नही रहती। अमृतचन्द्राचार्यका समय विक्रमकी १० वी शताब्दीका उत्तरार्ष है। पट्टावलीमे उनके पट्टारोहणका समय जो वि० स० ६६२ दिया है वह ठीक जान पड़ता है, क्योंकि स० १०५५ में बनकर समाप्त हुए 'धर्मरत्नाकर' ग्रन्थमें अमृतचन्द्राचार्य के 'पुरुषार्थसिद्ध्युपाय' से कोई ६०
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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