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________________ ध्यान - शास्त्र २१५ रूप सम्पदाएँ भव्य जीवोंकी अपनी स्वस्वरूपोपलब्धिके लिए 4 कारणीभूत होवे ।' व्याख्या - यहाँ आचार्यमहोदयने जो आशीर्वाद दिया है वह बडा ही महत्वपूर्ण है - इससे अधिक महत्वका आशीर्वाद और क्या हो सकता है ? इसमे कहा गया है कि भव्य जीव्रोको वस्तुओके यथार्थविज्ञानकी, यथार्थ श्रद्धानकी और यथार्थध्यानकी सम्पत्ति प्राप्त होवे और ये तीनो सम्पत्तियां उनकी स्वरूपोपलब्धि (मोक्षप्राप्ति) में सहायक बने । स्वस्वरूपकी उपलब्धि ही सबसे वडा लाभ है । वह जिन तीन प्रधान कारणो द्वारा सिद्ध होता है उनके उल्लेख पूर्वक यहाँ भव्यजीवोको उसी लाभसे लाभान्वित होनेकी उत्कट भावना करते हुए उन्हे तदनुरूप आशीर्वाद दिया गया है । 1 ग्रन्यकार-प्रशस्ति श्रीवीरचन्द्र - शुभदेव - महेन्द्र देवाः शास्त्राय यस्य गुरवो विजयामरश्च । दीक्षागुरु, पुनरजायत पुण्यमूर्ति श्रीनागसेन - ' मुनिरुद्ध चरित्र कीर्तिः ॥ २५६ ॥ तेन 'प्रबुद्ध - धिषणेन गुरूपदेशमासाद्य सिद्धि-सुख-सम्पदुपायभूतम् । तत्त्वानुशासनमिदं जगतो हिताय श्रीरामसेन - विदुषा व्यरचि स्फुटार्थम् ॥ २५७ ॥ 'जिसके श्रीमान् वीरचन्द्र, शुभदेव, महेन्द्रदेव और विजयदेव १. मु मुनिरुद्य । २ सु प्रवृद्ध; सिजु प्रसिद्ध । ३. मु मे श्री नागसेन । -
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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