________________
१७४
तत्वानुशासन कभी तृषाका नाश नहीं होता-प्यास नहीं बुझती। किन्तु इस ध्यानसे ध्यानवतियोके धारणाके अनुसार शान्तरूप और फररूप अनेक प्रकारके फल उदयको प्राप्त होते हैं ऐसा देखने मे आता है।'
व्याख्या-यहाँ एक तीसरी दृष्टिसे शकाके समाधानकी वातको लिया गया है और वह यह कि 'यदि इस अहंद्रूपमे आत्मध्यानको भ्रान्त मान लिया जाय तो इससे किसो फलकी प्राप्ति नही बनती, उसी प्रकार जिस प्रकार कि मिथ्याजलसे कभी प्यास नहीं बुझती । परन्तु ऐसा नहीं है, ध्यान करनेवालोके इस ध्यानसे धारणाके अनुसार अनेक प्रकारके शान्त तथा क्रूररूप फलोकी प्रादुर्भूति देखनेमे आती है और इसलिए इस ध्यानको भ्रान्त नहीं कहा जा सकता।
आगे इस ध्यानके फलोंको स्पष्ट किया गया है। __ध्यान-फलका स्पष्टीकरण गुरूपदेशमासाद्य ध्यायमान. समाहितः। अनन्तशक्तिरात्माऽयं मुक्ति भुक्ति च यच्छति ॥१६६॥
'सम्यकगुरुके उपदेशको प्राप्त हुए एकाग्र-ध्यानियोंके द्वारा ध्यान किया जाता हुआ यह अनन्त शक्तियुक्त अर्हन आत्मा मुक्ति तथा भुक्तिको प्रदान करता है।'
व्याख्या-यहाँ अर्हद्रूप आत्मध्यानके बलसे मुक्ति तथा भुक्तिको प्राप्ति होती है, ऐसा सूचित किया गया है। किसको मुक्तिको और किसको भुक्तिको प्राप्ति होती है, यह आगे बतलाया गया है। ध्यातोऽर्हत्सिद्धरूपेण चरमाङ्गस्य मुक्तये । तद्ध्यानोपात्त-पुण्यस्य स एवाऽन्यस्य भुक्तये ॥१६७।।