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________________ । १३२ तत्त्वानुशासन इस विषयका दूसरा कितना ही वर्णन एव संसूचन समरसीभावकी सफलताको प्रदर्शित करते हुए ग्रन्थमे कुछ पद्योंके बाद आगे दिया है। यहाँ 'स एव परमात्मा स्याव नतेयश्च मन्मथ' यह वाक्य खास तौरसे ध्यान देने योग्य है। इसके द्वारा उन शिव, गरुड, तथा काम नामके तीन तत्त्वोकी सूचना की गई है जिन्हे जैनेतर योगीजन अपने ध्यानका मुख्य विषय बनाते है और जिनके विपयका स्पष्टीकरण एव महत्वपूर्ण वर्णन 'ज्ञानार्णव' के 'त्रितत्वप्ररूपण' नामक २१ वें प्रकरणमे, आत्माकी अचिन्त्यशक्तिसामर्थ्यका ख्यापन करते हुए, गद्य-द्वारा किया गया है । साथ ही यह बतलाया गया है कि तीनो तत्व आत्मासे भिन्न कोई जुदे पदार्थ नही है-ससारस्थ आत्माके ही शक्ति-विशेष हैं, जैसा कि उसके निम्न पद्य तथा गद्यसे स्पप्ट है - "शिवोऽय वैनतेयश्च स्मरश्चात्मैव कीर्तितः । अणिमादि-गुणाऽनय॑रत्नवाधिर्व धर्मत" ॥६॥ "तदेव यदिह जगति शरीरविशेषसमवेत किमपि सामगेमुपलभामहे तत्सकलात्मन एवेति विनिश्चयः । प्रात्मप्रवृत्तिपरपरोत्पादितत्वाद्विग्रह-ग्रहणमस्येति ।" समरसीभाव और समाधिका स्वरूप 'सोऽयं समरसीभावस्तदेकीकरण स्मृतम् । एतदेव समाधि. स्याल्लोक-द्वय-फल-प्रद ॥१३७॥ १ देखो, पद्य १६७ से २१२ । २. "सोऽय समरसीभावस्तदेकीकरण स्मृतम् । अपृथक्त्वेन यत्रात्मा लीयते परमात्मनि ।। (ज्ञाना० ३१-३८) "सोऽय समरसीभावस्तदेकीकरण मत । आत्मा यदपृथक्त्वेन लीयते परमात्मनि ॥ (योगशास्त्र १०-४) "ध्यात-ध्यानोभयाऽभावे ध्येयेनंक्य यदा व्रजेत् । सोऽय समरसीभावस्तदेकीकरण मत ॥ (योगप्रदीप ६५) - -
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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