SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यानायको ध्यानाविष्टस्वरूपको ध्यानागरुड़ अथवा का विक ध्यान-शास्त्र भावध्येयका स्पष्टीकरण यदा ध्यान-बलाद्ध्याता शून्यीकृत्य स्वविग्रहम् । ध्येयस्वरूपाविष्टत्वात्ताहक सम्पद्यते स्वयम् ॥१३५॥ तदा तथाविध-ध्यान-संवित्ति-ध्वस्त-कल्पनः । 'स एव परमात्मा स्यानतेयश्च मन्मथः ।।१३६।। 'जिस समय ध्याता ध्यानके बलसे अपने शरीरको शून्य बनाकर ध्येयस्वरूपमे प्राविष्ट-प्रविष्ट होजानेसे अपनेको तत्सदृश बना लेता है उस समय उस प्रकारको ध्यान-सवित्तिसे भेद-विकल्पको नष्ट करता हुआ वह ही परमात्मा, गरुड़ अथवा काम देव हो जाता है-परमात्मस्वरूपको ध्यानाविष्ट करनेसे परमात्मा, गरुडरूपको ध्यानाविष्ट करनेसे गरुड और कामदेवके स्वरूपको ध्यानाविष्ट करनेसे कामदेव बन जाता है। __व्याख्या-पिछले एक पद्य (१३२)मे भाव-ध्येयका जो स्वरूप ध्यानारूढ आत्माका ध्येय-सदृश परिणमन बतलाया गया है उसीके स्पष्टीकरणको लिये हुए ये दोनो पद्य हैं। इनमे यह दर्शाया है कि जिस समय ध्याता ध्यानाऽभ्यासके सामर्थ्य से अपने शरीरको शून्य (सुन्न) बना लेता है-उस पर बाह्य पदार्थका असर नही होता-और ध्येयके स्वरूपको अपनेमे आविष्ट कर लेनेसे तत्सदृश हो जाता है उस समय वह उस प्रकारके तद्रूप ध्यानकी अनुभूतिसे ध्याता और ध्येयके भेद-भावको मिटा देता है और इस तरह जिसका ध्यान करता है भावसे उस रूप हो जाता तथा उस रूप क्रिया करने लगता है। यहाँ ध्येयमे उदाहरणरूप परमात्मा, गरुड़ और कामदेवको रक्खा गया है, इनमेसे जिस ध्येयका भी ध्यान हो ध्याता उसी रूप बन जाता और क्रिया करने लगता है, यही भावध्येयका सार है। १. जं परमप्पय तच्चं तमेव विप-काम-तत्तमिह भणिय ॥४८॥ -ज्ञानसारे-पद्मसिंहः - . - -- -
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy