SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ तत्त्वानुशासन गमो सिद्धारण, णमो पाइरियारण, णमो उवज्झायारण, णमो लोए सव्वसाहरण' इस अपराजित मत्रके रूपमे है, और पठन जिनेन्द्रोक्त शास्त्रका बतलाया है। इन दोनोके लिए 'एकाग्रचेतसा' विशेषण खास तौरसे ध्यानमे लेने योग्य है । एकाग्रचित्तताके विना न जपना ठीक बैठता है और न पढना । जिस प्रकार जिनागमका एकाग्रचित्तसे पढना स्वाध्याय है उसी प्रकार णमोकार मत्रका एकाग्रचित्तसे जपना भी स्वाध्याय है। स्वाध्यायके भेदोमे वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश ऐसे पांच नाम प्रसिद्ध है' और इनके कारण ही स्वाध्यायको तत्त्वार्थसूत्रादि आगमग्रन्थोमे पचभेदरूप वर्णन किया है । इससे पच नमस्कृतिके जपको जो यहाँ स्वाध्याय कहा गया है वह कुछ खटकने जैसी बात मालूम होती है, परन्तु विचारने पर खटकनेकी कोई बात मालूम नही होती; क्योकि यहाँ एकाग्रचित्तसे जपकी वात विवक्षित है, तोता-रटन्तके तौर पर नही । एकाग्रचित्तसे जब अरहन्तादि पचपरमेष्ठियोके स्वरूपका ध्यान किया जाता है तो उससे बढकर दूसरा स्वाध्याय (स्व अध्ययन) और क्या हो सकता है ? प्रवचनसारमे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यने लिखा है कि 'जो अर्हन्तको द्रव्यत्व, गुणत्व और पर्यायत्वके द्वारा जानता है वह आत्माको जानता है और उसका मोह क्षीण हो जाता है। अत एकाग्रचित्तसे पचपरमेष्ठियोके स्वरूपको स्वानुभूतिमे लाते हुए जो णमोकार मत्रका जप है, वह परम स्वाध्याय है, इसमे विवादके लिये कोई स्थान नही है। योगदर्शनमे भी प्रणवादिके जपको तथा मोक्षशास्त्रके अध्ययनको स्वाध्याय बतलाया है; जैसाकि उसके 'तप. स्वाध्यायेश्वर-प्रणिधानानि क्रियायोग'इस सूत्रके निम्न भाष्यसे प्रकट है - १. त० सू० ६.२५ २. जो जाणदि अरहत दन्वत्त-गुणत्त-पज्जयत्तेहिं । सो जाएदि अप्पाण मोहो खलु जादि तस्स लओ ॥८॥
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy