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________________ ध्यान-शास्त्र प्रात्मा' इस प्रकार एक ही वस्तु पूर्वापरीभूतरूपसे कभी आत्माको पहले ज्ञानको पीछे और कभी ज्ञानको पहले आत्माको पीछे रखकर कही गयी है।' ___ व्याख्या-जान और आत्मा ये एक ही पदार्थके दो नाम हैं, इसलिये इनमेसे जो जब विवक्षित होता है उसका परिचय तब दूसरे नामके द्वारा कराया जाता है। जब आत्मा नाम विवक्षित होता है तब उसके परिचयके लिये कहा जाता है कि वह ज्ञान-स्वरूप है, और जब ज्ञान नाम विवक्षित होता है तब उसके परिचयके लिये कहा जाता है कि वह आत्म-स्वरूप है। इन दोनो नामोके दो नमूने इस प्रकार है: 'गाण अप्पा सन्वं जम्हा सुयकेवली तम्हा।' (समयसार १०) 'प्रात्मा ज्ञानं स्वय ज्ञानं ज्ञानादन्यत्करोति किम् ।' (समयसार-कलश ३-१७) यहाँ पूर्वाऽपर-पद्यो (६८,७०) के मध्यमे इस पद्यकी स्थिति कुछ खटकती हुई जान पडती है, क्योकि इससे कथनका सिलसिला (क्रम) भग होता है और यह कुछ अप्रासगिक-जंसा जान पडता है। जयपुरके दिगम्बर जैन बडा मन्दिर तेरहपन्थीकी प्रति (ज) मे, जो सवत् १५६० आषाढवदि सप्तमोकी लिखी हुई है, यह पद्य नहीं है। आरके जैनसिद्धान्त-भवनको प्रति (सि) मे भी, जो कि वेणूपुरस्थ पन्नेचारिस्थित केशव शर्मा नामके एक दक्षिणी विद्वान्-द्वारा परिधावि सवत्मे द्वि० आषाढ कृष्ण एकादशीको सोमवारके दिन लिखकर समाप्त हुई है, यह पद्य नहीं है, और मेरी निजी प्रति (जु)मे भी, जो सागली निवासी पांगलगोत्रीय बापूराव जैनकी लिखी हुई है, यह पद्य नहीं है। श्री प. प्रकाशचद्रजोने व्यावरके ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवनको प्रति (वि० स० १९६६) को देखकर लिखा है कि 'उसमे यह ६९ वा पद्य नहीं है। ऐसी स्थितिमे यह पद्य
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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