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________________ २२ तत्त्वानुशासन मोहचक्रीका सैन्यसनिवेश-बहुत ही दुर्भेद बना हुआ है।' व्याख्या-मोहके गढको यदि जीतना है तो ममकार और अहकारको पहले जीतना परमावश्यक है। इनके कारण ही मोह शत्रु दुर्जेय बना हुआ है और वह ससारी प्राणियोको अपने चक्करमे फंसाता, बाँधता और दु ख देता रहता है। ____ ममकार और अहकार दोनो भाई एक-दूसरेके पोषक हैं। इनका स्वरूप अगले पद्योमे बतलाया गया है और साथ ही यह भी दर्शाया गया है कि कैसे इनके चक्रव्यूहमे फंस कर यह जीव ससार-परिभ्रमण करता रहता है। ममकारका लक्षण शश्वदनात्मीयेषु स्वतनु-प्रमुखेषु कर्मजनितेषु । आत्मीयाभिनिवेशो ममकारो मम यथा देह. ॥१४॥ 'सदा अनात्मीय-आत्मस्वरूपसे बहिर्भूत-ऐसे कर्मजनित स्वशरीरादिकमे जो आत्मीय अभिनिवेश है-उन्हे अपने आत्मजन्य समझने रूप जो अज्ञानभाव है-उसका नाम 'ममकार' है, जैसे मेरा शरीर ।' व्याख्या-जो कभी आत्मीय नही, आत्मद्रव्यसे जिनकी उत्पत्ति नहीं और न आत्माके साथ जिनका अविनाभाव-जैसा कोई गाढ सम्बन्ध है, प्रत्युत इसके जो कर्मनिर्मित हैं, आत्मासे भिन्न-स्वभाव रखनेवाले पुद्गल परमाणुओ-द्वारा रचे गये हैं, ऐसे परपदार्थोंको जो अपना मान लेना है उसका नाम 'ममकार' है, जैसे यह मेरा शरीर, यह मेरा घर, यह मेरा पुत्र, यह मेरी स्त्री और यह मेरा धन इत्यादि। क्योकि ये सब वस्तुएं वस्तुत आत्मीय नही, आत्माधीन नही, अपने-अपने कारण-कलापके
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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