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________________ १६ तत्त्वानुशासन इन चारको बन्धका कारण बतलाया है, दूसरे स्थान पर इन चारोका उल्लेख करते हुए इनमेसे प्रत्येकके सज्ञ-असज्ञ (चेतनअचेतन) ऐसे दो-दो भेद करते हुए 'बहुविहभेया' पदके द्वारा बहुत भेदोकी भी सूचना की है, तीसरे स्थान पर राग, द्वष तथा मोहको आस्रवरूप बन्धका कारण निर्दिष्ट किया है और चौथे स्थान पर मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरत-भाव और योगरूप अध्यवसानोको बन्धके कारण ठहराया है। । तत्त्वार्थसूत्रमे 'मिथ्या. दर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय, और योग इन पाचको बन्धके हेतु लिखा है । गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) मे मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग नामके वे ही चार बन्धके कारण दिये हैं जिनका उल्लेख समयसारको १०९ वी गाथामे पाया जाता है। अन्तर केवल इतना ही है कि समयसारमें जिन्हे 'बन्धकार' लिखा है उन्हीको गोम्मटसारमे 'आस्रवरूप' निर्दिष्ट किया है । यह कोई वास्तविक अन्तर नही है, क्योकि मिथ्यात्वादि सामण्णपच्चया खलु चउरो भण्णति बधकत्तारो। भिच्छत्त अविरमण कसाय-जोगा य बोधव्वा ॥१०॥ मिच्छत्त अविरमण कसाय जोगा य सण्णसण्णा दु । बहुविहभेया जीवे तस्सेव अणण्णपरिणामा ।।१६४ ।। रागो दोसो मोहो य आसवा णत्यि सम्मदिद्विस्स । तम्हा आसवभावेण विणा हेदू ण पच्चया होति ।।१७७ । तेसि हेऊ भणिदा अज्झवसाणाणि सव्वदरसीहि । मिच्छत्त अण्णाण अविरयभावो य जोगो य ॥१६०॥ (समयसार) २. मिथ्यादर्शनाऽविरति-प्रमाद-कषाय-योगा बन्धहेतव (त० सू०८-१०) ३ मिच्छत्त अविरमण कसाय-जोगा य आसवा होति-गो०क०-७८६
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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