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तत्त्वानुशासन वास्तविक सुख न बतलाकर दु ख ही बतलाया गया है । इस आध्यात्मिक ग्रन्थका लक्ष्य भो चूंकि पूर्वपद्यानुसार शिव-सुखको प्राप्ति कराना है, अत इस ग्रन्थमे भी इन्द्रियजन्य सासारिक विषय-सौख्यको अनेक दृष्टियोसे दुख हो प्रतिपादित किया गया है।
उपादेयतत्त्व और तत्कारण मोक्षस्तत्कारण चैतदुपादेयसुदाहृतम् । उपादेय सुख यस्मादस्मादाविर्भविष्यति ॥५॥ '(उस सर्वज्ञने) मोक्ष और मोक्षका कारण-सवर-निर्जरा, इस तत्त्वत्रयको उपादेय प्रगट किया है; क्योकि उपादेयरूपग्रहण करने योग्य-जो सुख है वह इस तत्त्वत्रयके प्रसादसे प्राविर्भावको प्राप्त होगा-अपना विकास सिद्ध करनेमे समर्थ हो सकेगा।' ___व्याख्या इस पद्यमे, उपादेय-तत्त्वका निरूपण करते हुए, यद्यपि मोक्षके साथ सवर और निर्जरा इन दो तत्त्वोका कोई स्पष्ट नामोल्लेख नही किया है फिर भी 'तत्कारण' पदके द्वारा मोक्षके कारणरूपमे इसी तत्त्वयुग्मका ग्रहण वाछनीय है, क्योकि आगम-विहित सप्त अयवा नवतत्त्वोमे इन्होको गणना है और १ सपर बाधासहिय विच्छिण्ण वधकारण विसम । ___ जइदियेहिं लद्ध त सव्व दुक्खमेव तहा ।।
(प्रवचनसार ७६) २. यत्तु सामारिक सौख्य रागात्मकमशाश्वतम् । स्वपर-द्रव्य-पभूत तृष्णा-सन्ताप-कारणम् ॥२४३।। मोह-द्रोह-मद-नोव-माया-लोभ-निवन्धनम् । दुखकारण-वन्धस्य हेतुत्वाद्दु खमेव तत् ।।२४४।। (तत्त्वानु०)