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तत्त्वानुशासन
वाक्योका इम भाष्यके निर्माणमे कुछ भी सहयोग मिला अथवा उपयोग हुआ है। न्यायाचार्य ५० दरवारीलालजी कोठिया और प० दीपचन्दजी पाण्याने भाष्यका एकाग्रताके साय अलग-अलग अवलोकन किया है, इस कृपाके लिए मैं दोनोका आभारी हूँ। जिन विद्वानो तया अन्य सज्जनोसे मुझे ग्रन्यादिक-मामग्रीकी प्राप्ति अथवा किसी सूचना-विशेपकी उपलब्धि हुई है उन सबका प्रामार में प्रस्तावनाने यथास्थान व्यक्त कर चुका हूँ। उनमे तीन सज्जनोके नाम शेप रहे हुए हैं-~एक ला० पन्नालालजी अग्रवाल दिल्लीका, जिन्होने मुझे धर्मरलाकर पोर विद्यानुसाशनादि ग्रन्योकी हस्तलिसित प्रतियोको शास्यभण्डारोसे लाकर दिया है, दूमरे ला० मनोहरलालजी जौहरी दिल्लीका, जिनके शास्त्र. भण्डारसे मुझे विद्यानुशासनका हिन्दी अनुवाद आदि कई अन्य देखनेको मिले है, तीसरे प० अमृतलालजी दर्शनाचार्य वनारसका, जिनसे आसन-विषयक फुछ अन्य-वाक्योकी सूचना प्राप्त हुई है। इन तीनोका भी मैं यहाँ प्राभार व्यक्त करता हूँ ।
ट्रस्टमन्त्री प० दरवारीलालजी को प्रेरणाको पाकर डा० मगलदेवजी शास्त्रीने, अनेक कार्यों में व्यस्त होते हुए भी समय निकालकर, प्राक्कथन' लिखनेकी जो कृपा की है उसके लिये मैं उनका भी आभारी हूँ।
इस अवसरपर मैं डा० ए० एन० उपाध्येजीको नहीं भुला सकता, जिन्होने मेरी प्रेरणाको पाकर मुद्रित भाष्यको पूरा पढ जाने और उस पर अग्रेजीमे अपना सुन्दर आमुख (preface) लिखकर भेजनेकी कृपा को है । इसके लिये मैं उनका साम तौरसे आभारी हूँ।
अन्तमे साहू शीतलप्रशादजीको मैं अपना हार्दिक धन्यवाद अर्पण करता हूँ, जिन्होने मेरी प्रेरणा और वाबू छोटेलालजीके परामर्शसे अपने पिताजीके द्वारा सस्थापित देवेन्द्र कुमार जैन ट्रस्ट नजीबाबादकी ओरसे इस अनुपम ध्यानशास्त्रके नि शुल्क वितरणका आयोजन किया है । दिल्ली, २५ सितम्बर १९६३ आश्विन शु० ७ स० २०२० जुगलकिशोर मुख्तार