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सप्ततिकाप्रकरण २८ प्रकृतिक, बन्धस्थानके समान सात उदयस्थान होते हैं। किन्तु यहाँ इतनी विशेषता है कि ३० प्रकृतिक उदयस्थान सम्यग्दृष्टियोंके ही कहना चाहिये, क्योकि २९ प्रकृतिक बन्धस्थान तीर्थकर प्रकृति सहित है और तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध सम्यग्दृष्टिके ही होता है। इन सब उदयस्थानोमेसे प्रत्येकमे ६३ और ८६ ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। इसमें भी आहारक संयतके ६३ की ही सत्ता होती है । इस प्रकार तीर्थकर प्रकृति सहित २६ प्रकृतिक बन्धस्थानमें चौदह सत्तास्थान होते हैं। तथा आहारकद्विक सहित ३० का बन्ध होने पर २६ और ३० ये दो उदयस्थान होते हैं। इसमेसे जो आहारक संयत स्वयोग्य सर्व पर्याप्ति पूर्ण करनेके बाद अंतिमकालमे अप्रमत्त । सयत होता है उसकी अपेक्षा २६ का उदय लेना चाहिये, क्योकि अन्यत्र २६ के उदयमें आहारकद्विकके बन्ध का कारण भूत विशिष्ट संयम नहीं पाया जाता। इससे अन्यत्र ३० का उदय होता है। सो इनमेंसे प्रत्येक उदयस्थानमे ६२ की सत्ता होती है। ३१ प्रकृतिक बन्धस्थानके समय ३० का उदय और ६३ की सत्ता होती है । तथा एक प्रकृतिक बन्धस्थानके समय ३० का उदय और ९३, ६२, ८९,८८, ८०, ७६, ७६ और ७५ ये आठ सत्तास्थान होते हैं। इस प्रकार २३, २५ और २६ के वन्धके समय चौबीस चौवीस सत्तास्थान २८ के बन्धके समय सोहल सत्तास्थान, मनुष्यगति और तियेचगतिके योग्य २६ और ३० के बन्धमें चौबीस चौबीस सत्तास्थान, देवगति प्रायोग्य तीर्थकर प्रकृतिके साथ २६ के बन्धमें चौदह सत्तास्थान, ३१ के बन्धमें एक सत्तास्थान और एक प्रकृति बन्धमें आठ सत्तास्थान इस प्रकार मनुष्यगतिमे कुल १५६ सत्तास्थान होते हैं।