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________________ गतिमार्गणामे नामकर्मके सवेध भंग ३०५ मनुष्यगतिमें २३ का बन्ध करनेवाले मनुष्यके २१, २२, २६, २७, २८, २६ और ३० ये सात उदयस्थान होते हैं। इनमेंसे २५ और २७ ये दो उदयस्थान विक्रिया करनेवाले मनुष्यके होते हैं। किन्तु आहारक मनुष्यके २३ का बन्ध नहीं होता, अत यहाँ ये याहारकके नही लेना चाहिये। इन दो उदयस्थानोमेंसे प्रत्येकमे १२ और ८८ ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। तथा शेप पाँच उदयस्थानीमें से प्रत्येकी १२, ८८, ८६ और ८० ये चार चार सत्तास्थान होते हैं । इस प्रकार २३ प्रकृतिक वन्धस्थानमें २४ सत्तास्थान होते हैं। इसी प्रकार २५ और २६ प्रकृतिक बन्धस्थानोमें भी चोवीस चौबीस सत्तास्थान जानना चाहिये । मनुष्यगति प्रायोग्य और तिर्यंचगति प्रायोग्य २६ ओर ३० प्रकृतिक वन्धस्थानोमें भी इसी प्रकार चौवीस चोवीस सत्तास्थान होते हैं। २८ प्रकृतिक वन्धस्थानमे २१, २५, २६, २७, २८, २९ और ३० ये सात उदयस्थान होते हैं। इनमेंसे .१ और २६ ये दो उदयस्थान सम्यग्दृष्टिके करण अपर्याप्त अवस्थामें होते हैं । २५ और २७ ये दो उदयम्थान वैक्रिय या आहारक सयतके तथा २८ और २९ ये दो उदयस्थान विक्रिया करनेवाले, अविरतसम्यग्दृष्टि और आहारक सयतके होते है । तथा ३० प्रकृतिक उदयस्थान सम्यग्दृष्टि या मिथ्याष्टियोके होता है। इन सब उदयस्थानोमे ६२ और ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। इसमें भी आहारक संयतके १२ प्रकृतिक एक सत्तास्थान ही होता है। किन्तु नरकगतिप्रायोग्य २८ प्रकृतियोका बन्ध करनेवालेके ३० प्रकृतिक उदयस्थान मे ६२, ८६, ८८ और ८६ ये चार मत्तास्थान होते हैं। इस प्रकार २८ प्रकृतिक बन्धस्थानमे १६ सत्तास्थान होते हैं। तथा तीर्थकर प्रकृतिके माथ देवगतिप्रायोग्य २६ प्रकृतियोका बन्ध करनेवालेके २०
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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