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________________ गुणस्थानोमें नामकर्मके सवेधभग। ८ ये तीन सत्तास्थान प्राप्त होते हैं। इनमेंसे आदिके दो उपान्त्य समय तक होते हैं और ८ प्रकृतिक सत्तास्थान अन्तिम समयमें होता है। तथा नौके उदयमे ८०, ७६ और ये तीन सत्तास्थान , होते हैं। सो यहा भी प्रारम्भके दो उपान्त्य समय तक होते है । और अन्तिम मत्तास्थान अन्तके समयमें होता है । अयोगिकेवलोके उदय और सत्तास्थानोके सवेधका बापक कोष्ठक [ ४७ ] वन्धस्थान भग उदयस्थान | मग सत्तास्थान - - ___ इस प्रकार गुणम्थानोमें बन्ध उदय और सत्तास्थानोका विचार समाप्त हुआ। अब गति आदि मार्गणाओमें इन बन्ध, उदय और सत्तास्थानोंका विचार अवसर प्राप्त है । उसमें भी पहले गतिमार्गणामे उनका कथन करते हैं दो छेकष्ट चउक्कं पण नव एक्कार छक्कगं उदया। नेरइआइसु संता ति पंच एकारस चउक्कं ।। ५१ ॥ (1) 'दो छकह चउक णिरयादिसु णामवंधठाणाणि । पण णव एगार पणय नि पच यारस चउक च ॥'-गो० कर्म० गा० ७१० ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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