SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ सप्ततिकाप्रकरण .. होकर सास्वादन गुणस्थानमें २६ भंग प्राप्त होते हैं। मिश्र गुणस्थान में परभव सम्बन्धी किसी भी आयुका वन्ध नहीं होता अतः यहाँ २८ भगोंमे से वन्धकालमे प्राप्त होने वाले नारकियोंके दो तिर्यंचोंके चार, मनुष्योके चार और देवीके दो इस प्रकार १२ भंग कम होकर १६ भंग प्राप्त होते हैं। अविरत सम्यग्दष्टि गुणस्थानमें तिर्यंच और मनुष्यों में से प्रत्येकके नरक, तियेच और मनुष्यायुका वन्ध नहीं होता तथा देव और नारकियोमें प्रत्येकके तिर्यंचायुका वन्ध नहीं होता, अत. २८ भंगोमे से ये ८ भंग कम होकर इस गुणम्यानमै २० भंग प्रप्त होते हैं । देशविरति तिथंच और मनुष्योके ही होती है और यदि ये परभव सम्बन्धी आयुका वन्ध करते हैं तो देवायुका ही वन्ध करते हैं अन्य आयुका नहीं, क्योकि देशविरतमे देवायुको छोड़कर अन्य श्रायुका वन्ध नहीं होता । अत' इनके आयुवन्ध के पहले एक एक ही भग होता है और आयुवन्धके कालमे भी एक एक ही भंग होता है इस प्रकार तिथंच और मनुष्य दोनोंके मिलाकर चार भंग तो ये हुए । तथा उपरत वन्ध की अपेक्षा तियेचों के भी चार भंग प्राप्त होते हैं और मनुप्याके भी चार भंग ग्राम होते है, क्योकि चारो गति सम्बन्धी आयुका वध करनेके पश्चात् तियत्त और मनुष्योंके देशविरत गुणस्थानके प्राप्त होनेमे किसी भी प्रकार की वाधा नहीं है। इस प्रकार आठ भंग ये हुए। कुल मिलाकर देशविरत गुणस्थानमे १२ भंग हुए । प्रमत्त और अप्रमत्त संयत मनुष्य ही होते हैं और ये देवायुको ही वॉधते हैं अतः इनके आयुवन्धके पहले एक भंग
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy