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________________ श्रीयुत हीराचंद्रभाई का परिचया प्रस्तुत छठा'कर्मग्रन्थ जिनको समर्पित किया गया है उनका संक्षिप्त परिचय वाचकोंको कराना जरूरी है वैसा ही रसप्रद भी है। यों तो हीरामाई को गुजरात के जैनसमाज खासकर श्वेताम्बर समाज के धार्मिक अभ्यास में रस लेनेवालों में से कोई भी ऐसा न होगा जो उन्हें एक या दूसरी तरह से जानता न हो। राजपूताना, पजाब आदि प्रदेशों के धार्मिक जिज्ञासु श्वेताम्बर भाइयों में से भी अनेक व्यक्ति उन्हें उनकी कृति के द्वारा भी जानते ही हैं, फिर भी उनका जीवनपरिचय शायद ही किसी को हो । एक तो वे स्वभाव से बहुत लजालु प्रकृति के हैं और किसी भी प्रकार की प्रसिद्धि से दूर रहनेवाले हैं। दूसरे वे अपने प्रिय विषय का अध्ययन-अध्यापन और चिंतन-मनन को छोड़कर किसी भी सामाजिक श्रादि अन्य प्रवृत्ति में नहीं पड़ते। इसलिए उनका जीवन उनके परिचय में आनेवालों के लिए भी एक तरह से अपरिचित-सा है । मैं स्वय लगभग ३५ वर्षों से उनके परिचय में आया हूँ तो भी पूरे तौर से उनका जीवन नहीं जान पाया। अगर उनके सदा सहवासी, निकट मित्र और धर्मबन्धु सब्रह्मचारी पडित भगवानदास हर्षचन्द्र मुझको सक्षित परिचय लिखकर न भेजते तो मैं विश्वस्त रूपसे निम्न पक्तियों में उनका परिचय देने में असमर्थ ही रहता। - भाई हीराचद वढवाण शहर जो कि झालावाड़ में वढवाण केम्प र्जकशन के निकट है और पुरानी ऐतिहासिक भूमि है, वहाँ के निवासी
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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