________________
२६
धर्मा
महाकाव्य
वगैरे मार्गमां उपयोगी तेम ज जिनार्चनादिमां उपयोगी सामग्री तैयार करी साथै लेवी. शुभ मुहूर्ते पोताना इष्टदेवने पुण्यपवित्र तीर्थजळ चडे स्नान करावी तेमनी विविध उपचारोवडे पूजा रचवी तेमनी सामे बेसी गुरूपदेश प्रमाणे संघपतिदीक्षाने ग्रहण करवी. दिक्पाळोने मंत्र साथै बलिप्रदान कर्तुं अने पुष्प, वखो, तथा मंत्रादिकवडे पूजित रथमां प्रभुने पोते पधरावा. गुरुने आगळ करी ससंघ चैत्यवंदन कर. क्षुद्रो पद्रवोनो नाश करवा कवच, मंत्र, अस्त्रप्रयोगो वगेरेने गुरुसन्निध अभिमंत्रण करी साथे राखवा अने जय. ध्वनि मंगलध्वनि करता वाजते गाजते शहेरमांथी नीकळी नगरनी नजदीकमां ज मंगलप्रस्थान करखं. पछी विविध स्थानोथी यात्रा करवा माटे आवता साधर्मिकोने धन, वाहन, वगेरेनी सहाय आपी सत्कार करवो. साथै आवेला वंदी ( भाट, चारण वगेरे), गायक ( गायन -स्तवन करनारा ) अने महात्माओने वस्त्र, भोज्य, द्रव्य वगेरेथी सत्कारवा. मार्गमां आवतां चैत्योनुं पूजन करवुं अने खंडित होय तेनों जीर्णोद्वार कराववो. चैत्य वगेरेनो वहीवट करनार साधर्मिकोनुं वात्सल्य अने वर्हित्रटनी तपास करवीं. दीनोने दान अने भयवाळाओने अभय प्रदान आपी बंदी ( केदी ) मनुष्योने बंधन मुक्त करवा. पंकमग्न (कादमां खुंची गएला ) शकटो ( गाडाओ) ने बहार कढाववा, भांगी गयां होंय तेने पोताना शिल्पीओं पासे तैयार कराववां. क्षुधितोने अन्न, तृषितोने जळ, व्याधिप्रस्तोने औषध, अने श्रमनिः संहोनें वाहन वगेरेनो बंदोबस्त करी आपको. पोते ब्रह्मचर्य, तप, शम वगेरे धर्मोनुं यथोक्त पालन कर. क्रम प्रमाणे आतां तीर्थोमाथी पुष्पाधिवासित पवित्र जळना घडाओ भरी लेवा अने त्रैलोक्यपति जिनभगवाननो स्नात्रपूजा महोत्सव रचवो. तेत्रा महोत्सवोमां दूध, दहीं, कर्पूर वडे पंचामृत स्नात्र अवश्य कर. प्रभुने चंदन, कर्पूर, कस्तूरी वगेरेनु विलेपन करनुं खर्णाभरण, पुष्पमाळा अने वस्त्रादिक पदार्थों अर्पण करी अगरु, चंदन आदि सुगंधि द्रव्योनो धूप आपवो कर्पूरनी आरात्रिक करी पुष्पांजलि अर्पवी अने विविध साधन सामग्री साथे चैत्यवंदन - देववंदन कर.
मालाधारण अने मुखोद्घाटन महोत्सव वखते देव द्रव्यनी वृद्धि माटे तेमां स्वशक्त्यनुसार द्रव्य कोशागारमां अर्पण करवुं अने गद्गद्वाणी वडे दीनता दर्शावी प्रभुनुं अंतःकरणपूर्वक शुद्ध भावभी स्तवन करवुं. आम प्रभुना पूजन अर्चन कार्यों करतां तीर्थयात्रा करी तीर्थाधिराजनुं ध्यान करतां करतां शुभ मुहूर्ते नगरप्रवेश करवो अने प्रभुने घेर पधरावा. घेर आवीने धर्मबंधुओ, मित्रवर्यो, पौरजनो सहित श्रीसंवनुं भोजनादि वडे साधर्मिक वात्सल्य करवुं सूरिश्री वधुमां कहे छे के संघपूजा ए महादान छे अने ए भावयज्ञ मणाय छे. परोपकार, ब्रह्मव्रताचरण, यथाशक्ति तप अने अनाथोने दान ए चार महास्थानोनी पुण्यानुबंधी पुण्यलक्ष्मीने संघपतिए आराघवी जोइए. जे भव्य मनुष्य उपर्युक्त प्रकारे व्रतनियमसहित ससंघ तीर्थयात्रा करे छे ते सौभाग्य अने भाग्यवानने संघपतित्वरूप लक्ष्मी पोते जवरे छे तीर्थयात्रानुं आवुं अद्भुत वर्णन पुण्ययशोभिवृद्धि माटे कोने आकर्षतुं नथी ! आवाज वर्णनो 'ज्ञाताधर्मकथा', 'व्यवहारसूत्र' अने बीजां अनेक जैन धर्मशास्त्रोंमां लखायाँ छे. तेमांची मनुष्य खकर्तव्यना पाठ शीखी शके छे, एटलं ज नही पण जनकल्याणकारी उदात्त भावनाना संचोंट पुरावाओ पूरा पाडे छे. वस्तुपाळे आवुं जं संघपतिव्रत धारण कर्यु हतुं जेनी सविस्तर आलोचना हवे पछी करवामां आवनार छे.
६६. प्राक्कालीन संघपतिओ अने यात्रिको
ससंघ यात्रा करवी, तेने उचित धर्मों आचरवा, पोतानी सल्लक्ष्मी उपरनों मिध्यामोह त्याग करी तेने आबा सत्कार्योंमां नियोजबी ए एक दुष्कर कार्य छे. तेमां तप, दान, दया, औदार्य, श्रद्धा अने