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धर्माभ्युदय महाकाव्य आव्यो हतो ए स्पष्ट छे. ग्रंथनी फळश्रुति पण तेवो ज अभिप्राय व्यक्त करे छे. कर्ता पोते ज आ महाकाव्यने यश अने धर्मरूप शरीरवाळु तेम ज विश्वानंद लक्ष्मीनो प्रकाश करनारुं सूचवे छे, तेथी ग्रंथकारनो उद्देश ऐतिहासिक हकीकतोने धार्मिक दृष्टिए प्रतिपादित करवानो पण जणाय छे. तेना ऐतिहासिक विधानो केटलीक नक्कर हकीकतो पूरी पाडे छे. आश्रित कवियो केटलीक वखत पोताना आश्रयदातानी प्रशंसा करता अतिशयोक्ति वापरे छे. परंतु आ काव्यमां तेवा प्रयोगो मूकवामां आव्या होवानुं लागतुं नथी. तेथी ऐतिहासिक दृष्टिये पण आ ग्रन्थ महत्त्व धरावे छे.
६४, वस्तुपालवंशवर्णन - ग्रन्थनी शरुआतमा कर्ता देवगुरुनु मंगल स्तवन करी ग्रन्थ नामाभिधान व्यक्त कर्या बाद, पोताना पूर्ण भक्त अने जिनशासनना परम अनुरागी वस्तुपाळनी ओळखाण आपतां तेमना पूर्वजोनो ढूंक परिचय नोंधे छे. आज कर्ताये पोताना 'सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी' काव्यमा वस्तुपाळ अने तेना पुरोगामी वंशधरोनें भव्य वर्णन करता अढार श्लोको रच्या छे; ज्यारे आ महाकाव्यमां ते पांच ज श्लोकोमा समेटी दे छे. ग्रंथकार आ ग्रन्थने महाकाव्य तरीके जाहेर करे छे अने महाकाव्यना नियम मुज़ब चरित्रनायकनुं विवेचन विस्तारथी करवू जोइये छतां सूरिश्रीये तेने संक्षेपमा भूकउचित मान्युं छे. तेनुं कारण एम लागे छे के आ महाकाव्य वस्तुपालनी कीर्ति अमर करवाना कारणथी रचवानो ग्रन्थकारनो उद्देश न हतो, पण जनसमाजने ते द्वारा उपदेश आपी तेना जेवां सत्कर्मों करवानी प्रेरणा उत्पन्न करवानोज हतो. आथी सूरिश्रीए, धार्मिक वस्तुनुं प्रधान विवेचन करवाना आशयने लई वस्तुपालना. पूर्वजोन कीर्तिगान विस्तृत रीते आ ग्रन्थमां नहि नियोज्यु होय एम मार्नु छ. छतां तेना आदिपुरुषथी वस्तुपाळ सुधीना महानुभावोनी योग्य पिछान थोडा शब्दोमां पण संपूर्णतः आपी छे. वस्तुपालचरित्रवर्णन अने तेनां सुकृत कार्योनी आलोचना करवा लखायेला 'सुकृतसंकीर्तन', 'सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी,' 'कीर्तिकौमुदी' अने 'वसंतविलास' वगेरे काव्योमा तेमनुं वंशवर्णन भभकदार भाषामा रजु करायुं छे ज्यारे अहींआ ग्रंथकार एक ज श्लोकमां ते वधी हकीकत जाहेर करतां कहे छे के "प्राग्वाट गोत्रमा अणहिलपुर नामक नगरने विषे चंडफ्नो पुत्र चंडप्रसाद थयो. जेनाथी सोम अने तेनाथी आसराज पुत्र थयो, जे. कालकूटने भक्षण करनार श्रीकंठ( रुद्र )ना कंठस्थळ विषे रहेल विषज मळना नाशकर्ता नवीन अमृत जेवा यशवाळो थयो.' कवि ढूंकमा पोताने कहेवानुं बधुं समजावी दे छे. "ते आसराजयी लक्ष्मीना धामरूप कुमारदेवीना कुक्षिसरमां वस्तुपाल नामक पुत्र थयो. तेमना अप्रज ( मोटा भाई ) मल्लदेव अने अनुज (नाना भाई) तेज, पाल नामक प्रातृओ थया". त्यार वाद तेओए मंत्रीश्वरनी मुद्रा केवी रीते प्राप्त करी तेनो पूर्व परिचय आपतां कवि लखे छे के ते समयमां चौलुक्यकुलचंद्र लवणप्रसादना कुलने उज्जवल करनार वीरधवल देव राज्यधुराने धारण करता हता. गुजरातना प्राचीन पाटनगर अणहिलपुरनो संस्थापक वनराज हतो ते आख्यायिकाने अनुसरी आ ग्रंथकारे पण अणहिलपुरने आदिराज वनराजनी कीर्तिप्रभा जेवू जणाव्यु छे. वस्तुपाळमा उत्तम प्रकारना सात 'वि'कारो हता तेनी नोंध लेतां सूरिश्री कहे छे' के “विभुता,
१ आकल्पस्थायि धर्माभ्युदयनवमहाकाव्यनाना यदीयम् ।
विश्वस्याऽऽनन्दलक्ष्मीमिति दिशति यशो-धर्मरूपं शरीरम् ॥-पंचदशसर्गान्ते २ श्रीमत्प्राग्वाटगोनेऽणहिलपुरभुवश्चण्डपस्याङ्गजन्मा, जज्ञे चण्डप्रसादः सदनमुरुधियामङ्गभूस्खस्य सोमः। .
आसाराजोऽस्य सूनुः किल नवममृतं कालकूटोपभुक्तश्रीकधीकण्ठकण्ठस्थलमलविपदुच्छेदकं यद्यशोऽभूत् ॥१८॥ ३ सोऽयं कुमारदेवीकुक्षिसरःसरसिज श्रियः सदनम् । श्रीवस्तपालसचिवोऽजनि तनयस्तस्यै जनितनयः॥ १९ ॥ यस्याग्रजो मलदेव, उतथ्य इव वाक्पतेः । उपेन्द्र इव चेन्द्रस्य, तेजःपालोऽनुजः पुनः॥२०॥-सर्ग १.