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________________ मक्तामरस्तोत्रम्। वसन्त तिलकछन्दः । सो भक्तामरप्रगतमौलिमणिप्रभाणावर मुद्योतकं दलितपापतमो वितानम । सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगयुगादा, वालंबनं भवजले पततां जनानाम् । - शब्दार्थ-भक नसने घालें। अमर -देवता। प्रणत प्रणाम करते। मौलि-मालक (मगाट)। मणि परल ! प्रमा-फांति । उद्योतक - प्रकाश करनेवाला. दलित दूर कर दिया है। पाप-पाप रूपी । तमःअधेरा। बितान-समूह । सम्यक नली प्रकार | प्रणम्य प्रणाम करके। जिनपाद - जिनेन्द्र के चरण। युग हो । युगादी-शुग मे भादि में। भालंम्बन संहारा। भवजल संसाररूपी पानी गर्यात संसार समुद्र । पतता -गिरते हुये जिन-जीव ॥ . मन्ययाधं-मक्ति करनेवाले जो देवता उनके नमें हुपं जो माथे उनके मुकुंटों को मणि (रनों की कांतिका भी प्रकाशक, दूर कर दिया है पाप रूपं सन्धेरे का समूह जिसने और संसार रूपी जल (समुद्र में गिरते जीयों का सहारा ऐसा जो "युगादि में हुए" जिन का पाद युगल उस को भली भांति प्रणाम करके । मांधार्थ-ग्रहां भाचार्य कहते हैं कि प्रभो मापके चरणों में इतनी ज्योति है कि जिस समय इन्द्र नमस्कार करते हैं उनके मुकुटो में जडे हुए जो रत्न जगमग जगमग करते हैं। यह वमका उन रत्नों में केवल आपके चरणों को प्रभा पड़ने से ही पैदा होती है मापके चरणपाप रूपी अंधेरे के नाशफ, संसार रूपी समुद्र में गिरते इए प्राणियों को हाथ से पकड़ कर बचाने वाले हैं। , आदि पुरुष आदीशजिन, आदिसुविधि करतार। . :धर्मः धुरन्धर परमगुरु, नमो आदि अवतार॥ ७ '. ॥१५ मात्रा चौपाई छन्द ॥ नतंसुर मुकुट रत्न छवि करें । अन्तर पाप तिमिर सब हरे॥ जिनपद बन्दं मन क्च काय । भवजल पतित उद्धरणसहाय ॥१॥
SR No.010634
Book TitleBhaktamar Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherDigambar Jain Dharm Pustakalay
Publication Year1912
Total Pages53
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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