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________________ भूमिका । यह भक्तामर संस्कृत पाठ श्रीमानतुंगाचार्य रचित हैं और इस का शब्द अर्थ अन्वयार्थ भाषार्थ हमने लिखा है और भाषा पाठ पण्डित हेमराज कृत है कठिन शब्दों का अर्थ हमने लिखा है परन्तु काल दोष से अन्यमति लेखका ने भक्तामर संस्कृत की ६वीं और ४५वी काव्य और भाषा पाठ के ३९ और ४४ छन्द में ऐसे शब्द प्रचलित कर दिये थे। जो स्त्री और पुरुषों की विषयेद्वियों के नाम हैं जब कभी स्त्री और मरद यां 'पिता और पुत्र या पुत्री मिल कर यह पाठ पढ़ा करते थे तो महा लज्जा का स्थान होता बल्कि जब कभी कोई विषया पण्डित कभी किसी स्त्री को यह पाठ पढ़ाता था. तो बार बार " .. . इन शरमनाक शब्दों का उच्चारण करने से उस स्त्री के शील अंगका कारण होता था सो दैवयोग से तलाश के बाद शुद्ध पाठ मिल जाने से हमने संस्कृत का पाठ ठीक कर और संस्कृत के अर्थ के साथ भाषा का मिलान कर सर्व त्रुटियां दूरकर दोनों पाठ अति शुद्ध कर छापे हैं भाषा छन्द ३२ में रवि नहीं रख पढ़ो छ १३ में डाकपत्र नहीं पीन पत्र- पदो. .. इस स्तोत्र का नाम भक्तामर कहने का यह कारण हैं, कि इस स्तोत्र के आदि भक्तामर पाठ होने से इसे भक्तामर कहते हैं अथवा जो भक्त शुद्ध मन करके इस स्त्रोत्रको नित प्रति पढ़े वह अमर कहिये. देवता, अथवा अ कहिये नहीं, मर कहिये मरना यानि नहीं मरने वाले अर्थात सिद्ध होजाते हैं ।
SR No.010634
Book TitleBhaktamar Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherDigambar Jain Dharm Pustakalay
Publication Year1912
Total Pages53
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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