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धरो धैर्य, सम-चित्त रहो औ'
सुख-दुखमें सविशेष । यही
अहंकार-ममकार तजो, जो- .
अवनतिकार विशेष । तप-संयममें रत हो, त्यागो
तृष्णाभाव अशेष ।। यही०
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'वीर' उपासक बनो सत्यके,
तज मिथ्याभिनिवेश। विपदाओंसे मत घबराओ,
धरो न कोपांऽऽ वेश ॥ यही० १ असत्याग्रह, मिथ्या परिणति, मिथ्यात्व ।
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