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संज्ञानी - संदृष्टि बनो, औ
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तजो भाव संक्लेश | सदाचार + पालो दृढ होकर, रहे प्रमाद न लेश || यही ( ९ )
सादा रहन-सहन भोजन हो, सादा भूषा-वेष | विश्व-प्रेम जागृत कर उरमें, करो कर्म निःशेष || यही ०
+ अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रहाचार्य और अपरिग्रह इन पाँच व्रतोंके अनुष्ठानको अथवा हिंसादिक पापों, कन्याविक्रयादि अन्यायों और मद्य-मांसादिक अभक्ष्यों के त्यागको 'सदाचार' कहते हैं ।
བྱ བ ན པ པ ས པའི ཞི སེམ མས་་མི དེརཅིང་་མིན་ མི་སོས་ཏེ