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वैर छुटे, उपजे मति जिससे, वही यत्न यत्नेश ।। यही०
(३) . . घृणा पापसे हो, पापीसे
नहीं कभी लव-लेश। . भूल सुझाकर प्रेम-मार्गसे,
करो उसे पुण्येश ।। यही तज एकान्त-कदाग्रह-दुर्गुण,
चनो उदार विशेप । रह प्रसन्नचित सदा, करो तुम
मनन तत्व-उपदेश ॥ यही० जोती राग-द्वेष-भय-इन्द्रिय
मोह-कपाय अशेप ।
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