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रोग - विना तत्शमनी' उत्तमओषधि जैसे व्यर्थ कही; तम-विन दृश्यमान होते सब, दीपशिखा ज्यों व्यर्थ कही । त्यों सांसारिक विषय - सौख्यका सिद्ध हुए कुछ काम नहीं, बांधित-विषैम-पराश्रित-भंगुर
बन्धहेतु जो, अदुख नहीं || (१८) यों अनन्त - ज्ञानादि गुणोंकी सम्पत्से जो युक्त सदा,
१. उस रोगको शान्त करनेवाली । २ बाधा सहित । ३ एक रस न रहकर वृद्धिन्हासको लिये हुए 1
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