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(४०) विविध सुनय-तप-संयमसे हो
सिद्ध, न भजते विकृति' कदा। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरणसे
तथा सिद्धपदको पाते, पूर्ण यशस्वी हुए. विश्वदे___ वाधिदेव जो कहलाते ॥
आवागमन-विमुक्त हुए, जिन__ को करना कुछ शेष नहीं, . आत्मलीन, सव दोप-हीन जिन
के विभावका लेश नहीं राग-द्वेष-भय-मुक्त, निरंजन, __ अजर-अमर-पदके स्वामी, D१ विक्रिया अथवा विकारको प्राप्त नहीं होते।
॥ २ सम्यक् चारित्र। ३ कर्ममल-रहित। । iකෙකෙකෙකෙකෙහෙලුක2)
දුකමෙක්සික්කඩ