________________
( ३५ )
जा बसता है अग्रधाममें', निरुपद्रव - स्वाधीन हुआ || (१२) मूलोच्छेद हुआ कर्मोंका, बन्ध - उदय-सत्ता न रही, अन्याकार - ग्रहणका कारण
रहा न तब, इससे कुछ हीन्यून, चरम-तनु- प्रतिमा के सम रुचिराकृति ही रह जाता और अमूर्तिक वह सिद्धात्मा, निर्विकार - पदको पाता ॥
^^
१ लोक - शिखरके अग्र भाग में । २ वर्तमान चरम शरीरसे भिन्न आकारको धारण करनेका । ३ अन्तिम शरीरके प्रतिबिम्ब- समान | ४ देदीप्यपान आकारको लिये हुए ।