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(१३) क्षुधा-तृषा-श्वासादि-काम-ज्वरहै जरा-मरणके दुःखोंका१ इष्टवियोग-प्रमोह-आपदा- ...
ऽऽदिकके भारी कष्टोंका- . । जन्म-हेतु जो, उस भवके क्षय__से उत्पन्न सिद्ध-सुखका
कर सकता परिमाण कौन है ? । लेश नहीं जिसमें दुखका ।
सिद्ध हुआ निज-उपादानसे', है खुद अतिशयको प्राप्त हुआ, . १ संसार । २ आत्माके उपादानसे-प्रकृतियों के उपादानसे नहीं । अर्थात् आत्मा ही उसका मूल कारण है-वही सुखकार्यरूप परिणमता है।
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