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සබ්බත
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ताका उल्लेख करनेके लिये उसकी एक प्रकारस
ज़रूरत भी थी; परन्तु उससे तूल होकर मूलकी लक्ष्यानुसार सूत्ररूपिणी कथनशैली और कथन-क्रमकी खूबीके नष्ट होनेकी बहुत बड़ी संभावना थी, जिसकी मैं अपनी इस रचना में यथाशक्ति बराबर रक्षा करता रहा हूँ, इससे वह अनुकूल न रहता और इस लिए उक्त स्थानकी त्रुटिपूर्ति के अर्थ आत्मज्योति जगानेके अमोघ उपायस्वरूप ' महावीर - संदेश ' नामकी एक दूसरी रचनाको परिशिष्टके तौरपर साथमें दे दिया गया है, जिससे इस पुस्तककी उपयोगिता बढ़ गई है । अस्तु; अपने इस सब प्रयत्नमें
मैं कहाँ तक सफल हुआ हूँ और कहाँ तक उक्त
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सिद्ध-भक्ति ' का विकास सिद्ध कर सका इसका निर्णय विज्ञ पाठकोंपर ही छोड़ता Laococc——————e
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මමදුමට
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