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पद्यमें सिद्धोंके स्वरूपका कुछ और अधिक स्पष्ट शब्दोंमें सार दिया गया है और अन्तके दोनों पद्योंमें फल-कथनके साथ उस विषयका हेतु पुरस्सर स्पष्टीकरण किया गया है जो २० वें पद्यके उत्तरार्धमें मूलके अनुसार निर्दिष्ट हुआ है; और उसके द्वारा सिद्धोंकी उपासना एवं भक्तिके रहस्यको बहुत कुछ थोड़े तथा सरल शब्दोंमें खोला गया है। 0 ऐसी हालतमें इस 'सिद्धि-सोपान' को, जिसका यह नाम बहुत कुछ सार्थक और साधार
है, पूज्यपादकी ‘सिद्धि-भक्ति ' का अनुवाद न a कहकर उसका यत्किंचित् विकास अथवा विस्तार कहना चाहिये । विस्तार और भी अधिक किया जा सकता था-खासकर छठे पथके पूर्वार्धके बाद घातिकर्मोंका समूल नाश करनेवाली उस विमल ज्योतिमय सुशक्तिके प्रादुर्भावकी योग्य
है, पूज्यपादक किंचित् विकास अधिक किया
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