________________
१०२ किया था । यह जीव ग्रन्थिप्रदेशके (मिथ्यात्वका उपशम करनेके ) समीप पहले अनन्त वार आया है, परन्तु उस मिथ्यात्वरूपी गांठका भेद करके इसने किसी भी समय सर्वज्ञशासनमन्दिरका अवलोकन (सम्यक्त्वप्राप्ति ) नहीं किया है। क्योंकि राग द्वेप मोह आदि क्रूर द्वारपालोंने इसे वारंवार निकालकर अलग कर दिया है। और इस कारण इसने वाहरहीसे मन्दिरके कुछ अंशको देखा है। परन्तु उस अवस्थामें इसने मन्दिरके इस भागको जहां कि सम्यक्वकी प्राप्ति होती है न कभी जाना है, और न कभी विचार किया है। ___ आगे उस भिखारीको पर्यालोचना करनेसे ऐसा विचार हुआ था कि, "मैं सचमुच ही निष्पुण्यक (पुण्यरहित ) हूं, जो पहले कभी इस नेत्रोंको आनन्दित करनेवाले राजमन्दिरको नहीं देख सका और न इसके देखनेके लिये मैंने पहले कभी कोई उपाय किया । और तो क्या मुझ अभागीने यह जाननेकी भी कभी इच्छा नहीं कि, यह राजमहल कैसा है ? यह द्वारपाल मेरा परमवन्धु है, जिसने दयाभावसे मुझ भाग्यहीनको भी यह दिखला दिया । ये लोग अतिशय धन्य हैं, जो इस राजमन्दिरमें सब प्रकारके कष्टोंसे रहित और प्रसन्न चित्त हो कर रहते हैं।" सो यह सब मेरे जीवके विषयमें इस प्रकारसे योजित करना चाहिये कि:-शुभध्यानके कारण जब जीवके परिणाम विशुद्ध हो जाते हैं, तब इसके चित्तमें सर्वज्ञशासनमन्दिरसम्बन्धी ऊपर 'कहे हुए सव विचार होते हैं । अथवा जब किसी अवसरपर भगवानके समवसरणका दर्शन करनेसे, अथवा जिनेंद्रदेवका अभिषेकोत्सव देखनेसे, अथवा वीतराग भगवानकी मूर्तिका निरीक्षण करनेसे, अथवा शांत स्वभाववाले तपस्वियोंके साक्षात्कारसे, अथवा अच्छे श्रावकोंकी संगतिसे; अथवा उनके अनुष्ठानोंका अवलोकन करनेसे मिथ्यात्व