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सफल हुआ । गत जुलाई मासके अन्तमें श्रीमान सेठ विनोदीराम बालचंदजीके फर्मके मालिक श्रीयुत सेठ लालचन्दजी सेठीने इस ग्रंथकी वह मूल प्रति ही मेरे पास भेज देनेकी कृपा की जिस परसे अनेक प्रतियाँ होकर हालमें इस संहिताका प्रचार होना प्रारंभ हुआ है और इस लिए सेठ साहबकी इस कृपा और उदारताके लिए उन्हें जितना धन्यवाद दिया जाय वह थोड़ा है । जिन जिन महानुभावोंने मेरी इस ग्रंथावलोकनकी इच्छाको पूरा करनेके लिए ग्रंथ भेजने-भिजवाने आदि द्वारा मेरी सहायता की है उन सबका मैं हृदयसे आभार मानता हूँ । इस विषयमें श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमीका नाम खास तौरसे उल्लेख योग्य है और वे मेरे विशेष धन्यवादके पात्र हैं; जिनके खास उद्योगसे झालरा पाटनकी मूल प्रति उपलब्ध हुई, जिन्होंने ग्रंथपरीक्षाकी सहायतार्थ अनेक ग्रंथोंको खरीदकर भेजने तककी उदारता दिखलाई और जिनकी कोशिशसे एक अलब्ध ग्रंथकी दक्कन कालिज पूनाकी लायब्रेरीसे भी प्राप्ति हुई । इस प्रकार ग्रंथ-प्राप्तिका यह संक्षिप्त इतिहास देकर अब मैं प्रकृत विषयकी ओर झुकता हूँ:
परीक्षाकी जरूरत । भद्रबाहु श्रुतकेवलीका अस्तित्व-समय वीर निर्वाण संवत् १३३ से. प्रारंभ होकर संवत् १६२ पर्यंत माना जाता है। अर्थात् विक्रम संवतसे. . ३०८ वर्ष पहले और ईसवी सनसे ३६५ वर्ष पहले तक भद्रबाहु मौजूद थे और इसलिए भद्रबाहुको समाधिस्थ हुए आज २२८५ वर्ष हो चुके हैं । इस समयसे २९ वर्ष पहलेके किसी समयमें ( जो. कि भद्रबाहुके श्रुतकेवली रहनेका समय कहा जाता है) भद्रबाहु. श्रुतकवली द्वारा इस ग्रंथकी रचना हुई है, ऐसा कुछ विद्वानोंका. अनुमान और कथन है। ग्रंथमें, ग्रंथके बननेका कोई सन् संवत् नहीं दिया और न ग्रंथकर्ताकी कोई प्रशस्ति ही लगी हुई है। परंतु ग्रंथकी.