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भी लेख नहीं निकला; बल्कि बहुतसे विद्वानोंने हमारे तथा लेखक महाशयके समक्ष इस बातको स्पष्ट शब्दोंमें स्वीकार किया कि आपकी समालोचनायें यथार्थ हैं । जैनमित्रके सम्पादक ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने पहले दो लेखांको
जैनमित्रमें उद्धृत किया और उनके नीचे अपनी अनुमोदनसूचक सम्मति प्रकट की। इसी प्रकार दक्षिण प्रान्तके प्रसिद्ध विद्वान और धनी सेठ हीराचन्द नेमीचन्दजीने लेखमालाके प्रायः सभी लेखौको मराठीमें प्रकाशित कराके मानों यह प्रकट कर दिया कि इस प्रकारके लेखोंका प्रचार जितना अधिक हो सके उतना ही अच्छा है। __यह सब देखकर अब हम ग्रन्थपरीक्षाके समस्त लेखोंको पृथक् पुस्तकाकार छपानेके लिए तत्पर हुए हैं। यह लेखमाला कई भागोंमें प्रकाशित होगी; जिनमेसे पहले दो भाग उपकर तैयार हैं। पहले भागमें उमास्वामिश्रावकाचार, कुन्दकुन्दश्रावकाचार और जिनसेनत्रिवर्णाचार इन तीन ग्रन्थोंकी परीक्षाके तीन लेख हैं और दूसरे भागमें भद्रबाहुसंहिताकी परीक्षाका विस्तृत लेख है। अब इनके बाद जो लेख निकले हैं और निकलेंगे वे तीसरे भागमें संग्रह करके उपाये जायेंगे ।
प्रथम भागका संशोधन स्वयं लेखक महाशयके द्वारा कराया गया है, इससे : पहले जो कुछ अशुद्धियाँ रह गई थीं वे सब इस आवृत्तिमें दूर की गई हैं। साथ ही जहाँ तहाँ आवश्यकतानुसार कुछ थोड़ा बहुत परिवर्तन भी किया गया है।
समाजमें केवल निप्पक्ष और स्वतंत्र विचारोंका प्रचार करनेके उद्देश्यसे यह लेखमाला प्रकाशित की जा रही है और इसी कारण इसका मूल्य बहुत कमकेवल लागतके वरावर-रक्खा गया है । आशा है कि सत्यप्रेमी पाठक इसका प्रचार करनेमें हमारा हाथ बँटावेंगे और प्रत्येक विचारशीलके हाथों तक यह किसी न किसी तरह पहुँच जाय, इसका उद्योग करेंगे।
जैनसमाजके समस्त पण्डित महाशयोंसे प्रार्थना है कि वे इन लेखाको ध्यानपूर्वक पढ़ें और इनके विषयमें अपनी अपनी स्वतन्त्र सम्मति हमारे पास भेजनेकी कृपा करें। इसके सिवाय निष्पक्ष विद्वानोंका यह भी कर्तव्य होना चाहिए कि वे ज्याख्यानों तथा समाचारपत्रों आदिके द्वारा लोगोंको ऐसे ग्रन्थोंसे सावधान रहेनेके लिए सचेत कर दें। . . द्वितीय भाद्रकृष्णो "
... प्रार्थी:- सं०-१९७४ वि. : नाथूराम प्रेमी।.