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________________ अन्थ-यरीक्षा। तलको सुशोभित किया ऐसा कहा जाता है; यशस्तिलकके निमार्णकर्ता श्रीसोमदेवसूरि विक्रमकी ११ वीं शताब्दिमें विद्यमान थे और उन्होंने वि. सं. १०१६ (शक सं. ८८१ ) में यशस्तिलकको बनाकर समाप्त किया है; धर्मपरीक्षा तथा उपासकाचारादि ग्रंथोंके कर्ता श्रीअमितगत्याचार्य विक्रमकी ११ वीं शताब्दिमें हुए हैं; योगशास्त्रदि बहुतसे . ग्रंथोंकी रचना करनेवाले स्वेतांवराचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरि राजा कुमारपालके समयमें अर्थात् विक्रमकी १३ वीं शताब्दिमें ( सं. १२२९. तक) मौजूद थे; विवेकविलासके कर्ता खेतांवर साधु श्रीजिनदत्तसूरि वि. की १३ वीं शताब्दिमें हुए हैं; और पं. मेधावीका अस्तित्वसमय १६ वीं शताब्दी निश्चित हैं। आपने धर्मसंग्रह श्रावकाचारको विक्रम संवत् १५४१ में बनाकर पूरा किया है। अब पाठकगण स्वयं समझ सकते हैं कि यह ग्रंथ ( उमास्वामिश्रावकाचार), जिसमें बहुत पीछेसे होनेवाले इन उपर्युक्त विद्वानोंके ग्रंथोंसे पद्य लेकर उन्हें ज्योंका त्यों या परिवर्तित करके रक्खा है, कैसे सूत्रकार भगवदुभास्वामिका बनाया हुआ ही संकता है ? सूत्रकार भगवान् उमास्वामिकी असाधारण योग्यता और उस समयकी परिस्थितिको, जिस समयमें कि उनका अवतरण हुआ है, सामने रखकर परिवर्तित पद्यों . तथा ग्रंथके अन्य स्वतंत्र बने हुए पद्योंका सम्यगवलोकन करनेसे साफ मालूम होता है कि यह ग्रंथ उक्त सूत्रकार भगवान्का बनाया हुआ नहीं है। बल्कि उनसे दशों शताब्दी पीछेका बना हुआ है। . . . . विरुद्धकथन । .. इस ग्रंथके एक पद्यमें. व्रतके, सकल, और विकल ऐसे, दो भेदोंका वर्णन करते हुए लिखा है कि सकलं व्रतके १३ भेद और विकल व्रतके १२ भेद हैं। वह पद्य इस प्रकार है:
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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