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________________ दर्शनसार । मतसे वह श्रावस्तीके अन्तर्गत शरवणके समीप उत्पन्न हुआ था उसके पिताको लोग 'मंसलि' कहा करते थे। पिता अपने हाथके चित्र दिखलाकर अपनी जीविका चलाता था । माताका नाम 'भद्रा' था । एक दिन ये दोनों भ्रमण करते करते शरवणके निकट आये और कोई स्थान न मिलनेसे वर्षाके कारण एक ब्राह्मणकी गोशालामें जाकर ठहर गये । वहाँ भद्राने एक पुत्रको जन्म दिया और उसका नाम स्थानके नामके अनुसार गोशाला रक्खा गया । प्राप्तवयस्क होने पर गोशाला भिक्षावृत्तिसे अपना निर्वाह करने लगा । इसी समय भगवान महावीरने भी ३० वर्षकी अवस्थामें जिन दीक्षा धारण की । 'मलिन्द-प्रश्न' नामक बौद्ध ग्रन्थमें लिखा है- सम्राट् मलिन्दने गोशालासे पूछा- अच्छे बुरे कर्म है या नहीं? अच्छे बुरे कमौका फल भी मिलता है या नहीं ?" गोशालाने उत्तर दिया-" हे सम्राट, अच्छे बुरे कर्म भी नहीं है और उनके फल भी कुछ नहीं हैं ।" बौद्ध कथाभोंके अनुसार मंखलि गोशाल पर उसका मालिक एक गलतीके कारण बहुत ही अप्रसन्न हुआ था। जब उसने भागनेकी चेष्टा की तब मालिकने जोरसे उसके वस्त्र खींच लिये और वह नंगा ही भाग गया। इसके बाद वह साधु हो गया और अपनेको 'बुद्ध' कहके प्रसिद्ध करने लगा। उसके हजारों शिष्य हो गये। बौद्ध कहते हैं कि वह मरकर अवीचि नगरमें गया । उसके मतसे समस्त प्राणी विनाकारण ही अच्छे बुरे होते है । संसारमें शक्तिसामर्थ्य आदि पदार्थ नहीं हैं । जीव अपने अदृष्टके प्रभावसे यहाँ वहाँ सचार करते हैं। उन्हें जो सुखदुःख भोगना पड़ते हैं, वे सब उनके अदृष्ट पर निर्भर हैं।१४ लाख प्रधान जन्म, ५०० प्रकारके सम्पूर्ण और असम्पूर्ण कर्म, ६२ प्रकारके जीवनपथ, ८ प्रकारकी जन्मकी तहें, ४९०० प्रकारके कर्म, ४९०० भ्रमण करनेवाले संन्यासी, ३ हजार नरक और ८४ लाख काल है। इन कालोंके भीतर पण्डित और मूर्ख
SR No.010625
Book TitleDarshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1918
Total Pages68
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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