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दर्शनसार।
mmmmm rommamimam me • • • •rrrrrrrrram संभव है कि काष्ठासंघकसमान शेप चार मत भी समयमिथ्यातियांक ही भीतर गिने गये हो । पर यदि ये समयमिथ्याती है, तो श्वेताम्बर सम्प्रदाय भी क्यों न समयमिथ्याती गिना जाय ? अन्य लेखकोंने काठासंघ आदिको 'जैनाभास' बतलाया है, पर उन्होंने इनके साथ ही श्वेताम्बरोंको भी शामिल कर लिया हे । यथा:
गोपुच्छकः स्वेतवासो द्राविडो यापनीयकः। नि:पिच्छिकचोति पञ्चैते जैनाभासा:प्रकीर्तिताः॥
नीतिसार। देवसेनके ही समान गोम्मटसारके कर्ता नेमिचन्द्रने भी स्वेताम्बर सम्प्रदायको साशयिकमाना है; परन्तु यह बात समझमें नहीं आती कि श्वेताम्बर मत सांशयिक क्यों है। विरुद्धानेककोटिस्पर्शि ज्ञानको संशय माना है । अतएव संशयीका सिद्धान्त इस प्रकारका होना चाहिए किन मालूम आत्मा है या नहीं, स्त्रियाँ मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं या नहीं, इत्यादि। परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदायका तो ऐसा कोई सिद्वान्त मालूम नहीं होता । दिगम्बर सम्प्रदायकी दृष्टिसे उसके वस्त्रसहित मोक्ष मानना, स्त्रियोंको मोक्ष मानना, चाहे जिसके घर प्रासुक भोजन करना आदि सिद्धान्त 'विपरीत' हो सकते है न कि 'संशयमिथ्यात्व ।। इसके सिवाय 'स्त्रीमुक्ति' और 'केवलिभुक्ति' ये दो बातें तो श्वेताम्बरोंके समान यापनीय सम्प्रदाय भी मानता है, पर वह 'सांशयिक' नहीं, समयमिथ्याती ही बतलाया गया है ।
६ तीसरी और चौथी गाथामें बतलाया है कि ऋषभदेवका पोता तमाम मिथ्यामतप्रवर्तकोंमें प्रधान हुआ और उसने एक विचित्र मत रचा, जो आगे हानिवृद्धिरूप होता रहा। भगवज्जिनसेनके आदिपुराणसे मालूम होता है कि इस पोतेका नाम मरीचि था, जिसके विषयमें लिखा है: