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( ७५ ) भगवान बद्ध के सभी उपदेश मौखिक थे। यद्यपि लेखन-कला का आविष्कार. भारत में बुद्ध-युग के बहुत पहले ही हो चुका था, फिर भी बुद्ध-उपदेश भगवान् बुद्ध के समय में ही लेखबद्ध कर लिये गये हों, इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। भगवान् बुद्ध के सभी शिष्य उन्हें स्मृति में ही रखने का प्रयत्न करते थे। इस बात के अनेक प्रमाण स्वयं त्रिपिटक में ही मिलते हैं। उदाहरणतः, एक बार दूर से आये हुए मोण नामक भिक्षु को जब भगवान् पूछते हैं “कहो भिक्षु ! तुम ने धर्म को कैसे समझा है ?" तो इसके उत्तर में वह सोलह अष्टक वर्गों को पूरा पूरा स्वर के साथ पढ़ देता है। भगवान् अनुमोदन करते हुए कहते हैं “साधु भिक्षु ! सोलह अप्टक वर्गों को तुम ने अच्छी प्रकार याद कर लिया है, अच्छी प्रकार धारण कर लिया है। तुम्हारे कहने का प्रकार बड़ा अच्छा है, खुला है, निर्दोष है, अर्थ को साफ साफ दिखा देने वाला है"।' इसी प्रकार बुद्ध-वचनों को अधिक विस्तृत रूप से धारण करने वाले भी अनेक बहुश्रुत, स्मृतिमान् भिक्ष थे। उनमें से अनेक धर्म-धर, सुत्तन्तिक (धर्म या सुत्त-पिटक को धारण करने वाले) थे, अनेक विनय-धर (विनयपिटक या विनय-सम्बन्धी उपदेशों को धारण करने वाले) थे, अनेक मात्रिका-धर (मात्रिकाओं--उपदेश-सम्बन्धी अनक्रमणियों, जिनसे बाद में अभिधम्म-पिटक का विकास हुआ, को धारण करने वाले) थे। २ इनके विषय में त्रिपिटक में अनेक बार प्रशंसापूर्वक कहा गया है--बहुस्सुता आगतागामा धम्मधरा विनयधरा मातिकाधरा । 3 वाद के 'पंचनेकायिका' 'भाणक' 'सुत्तन्तिक', 'पेटकी' जैसे शब्द भी इसी पूर्व परम्परा को प्रकट करते हैं । अंगुत्तर-निकाय के 'एतदग्गवग्ग' में हम भगवान् बुद्ध के उन प्रमुख भिक्षु-भिक्षुणी एवं उपासक उपासिकाओं की एक लम्बी सुची देखते हैं, जिन्होंने साधना की विशिष्ट शाखाओं में दक्षता प्राप्त करने के अतिरिक्त भगवान के वचनों को स्मरण करने में भी विशेषता प्राप्त कर ली
१. उदान, पृष्ठ ७९ (भिक्षु जगदीश काश्यप का अनुवाद) २. देखिये विनय-पिटक-चुल्लवग्ग । ३. बहुश्रुत, शास्त्रज्ञ, धर्म, विनय और मात्रिकाओं को धारण करने वाले विद्वान् भिक्ष । विनय-पिटक के महावग्ग २; १०, और चुल्लवग्ग १, १२ में; दीध-निकाय के महापरिनिब्बाण सुत्त (तृतीय भाणवार) में; अंगुत्तर-निकाय (विसुद्धिमय ४।१९ में उद्धृत) में ; तथा त्रिपिटक के अन्य अनेक स्थानों में।