________________
अक्षि
स्थापयति
ठापेति स्थितः
ठितो (३) शब्द के आदि में क्ष् होने पर पालि में उसका क्ख् या च्छ हो जाता है।
मध्य-स्थिति में भी यही परिवर्तन होता है। यहाँ दोनों के ही उदाहरण दे देने ठीक होंगे--- क्षुधा
खुधा दक्षिणा
दक्खिणा मक्षिका
मक्खिका क्षारिका
छारिका कक्ष
कच्छ तक्षति
तच्छति
अक्खि (अच्छि भी) कहीं कहीं 'क्ष्' का परिवर्तित रूप 'ग्घ्' या 'ज्झ्' भी होता है। गायगर का मत है कि इस दशा में संस्कृत अक्षर क्ष् एक विशेष भारत-यूरोपियन ध्वनि का विकसित रूप हैप्रक्षरति
पग्घरति क्षाम
झाम . (आ) मध्य-संयुक्त-व्यंजन ___ मध्य-संयुक्त-व्यंजनों के परिवर्तन में पालि में व्यंजन-अनुरूपता, व्यंजन-विपर्यय, व्यंजनों के उच्चारण-स्थान में परिवर्तन, प्राणध्वनि का आगमन और लोप, आदि सभी प्रवृत्तियाँ पाई जाती है। विशेषतः व्यंजन -अनुरूपता और व्यंजनविपर्यय अधिक पाये जाते हैं। नीचे के विवरण से यह स्पष्ट होगा।
(१) व्यंजन-अनुरूपता (अ) पूर्ववर्ती व्यंजन का लुप्त होकर परवर्ती व्यंजन का रूप धारण कर लेना
(१) स्पर्श+ स्पर्श में, यथा
उक्त
BE
सप्त