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नंगल
( ६१ ) परिष्वजते
पलिस्सजति परिखनति
पलिखनति पालि में यह परिवर्तन यद्यपि अधिकतर पाया जाता है, किन्तु नियमतः यह मागधी प्राकृत की ही विशेषता है । कुछ अन्य प्राकृतों में भी इसके स्फुट उदाहरण मिलते हैं। (ए) कहीं-कहीं सं० ल के स्थान पर पालि में र् पाया जाता है। अलिंजर
अरंजर आलम्बन
आरम्मण इसके अपवाद-स्वरूप कहीं कहीं ल के स्थान पर न भी पाया जाता हैदेहली
देहनी आदि में भी इसी प्रकार
लांगल (हल) (ऐ) सं० य के स्थान पर पालि व्आयुध
आवुध आयुष्मान्
आवुसो कषाय
कसाव (ओ) सं० व् के स्थान पर पालि य्-- दाव
दाय (दाव भी) (औ) सं० व् के स्थान पर पालि म् और सं० म् के स्थान पर पालि व्द्रविड
दमिळ मीमांसते
वीमसति कुछ अनियमित प्रयोग भी मिलते हैं, जैसे-- पिपीलिका
किपिल्लका (८) वर्ण-विपर्यय । शब्द के मध्य में स्थित व्यंजनों में पारस्परिक एक दूसरे की जगह ग्रहण कर लेना भी प्रायः देखा जाता है। यह विपर्यय अधिकतर 'र' व्यंजन में होता है। आरालिक
आलारिक करेणु
कणेरु
रहद प्रावरण
पारुपण (पापुरण भी)