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उमी ममय का मानना पड़ेगा । 'बालावतार' व्याकरण पर लिखी हुई एक टीका भी मिलती है, किन्तु उसके लेखक का नाम और काल आदि सब अज्ञात है । (८) बरमी भिक्षु कण्टकखिपनागित या केवल नागित विरचित 'मद्दमारत्थजालिनी' नामक कच्चान व्याकरण की टीका १३५६ ई० (बुद्धाब्द १९००) में लिखी गई । (९) 'कच्चायन-भेद' नामक कच्चान-व्याकरण की टीका जिसकी रचना चौदहवीं शताब्दी के उत्तर भाग में स्थविर महायास ने की। इन्ही स्थविर की एक और व्याकरण संबंधी रचना 'कच्चायन-सार' है।' 'गंधवंम' के वर्णनानुसार 'कच्चायन-भेद' और 'कच्चायन-सार' दोनों धम्मानन्द नामक भिक्षुकी रचनाएँ है २ । 'कच्चायन-भेद' और 'कच्चायन-सार पर टोकाएं भी लिखी गई। 'कच्चायन-भेद' की दो टीकाएँ अति प्रसिद्ध हैं, (१) मान्थविकासिनी' जिसकी रचना १६०८ ई० (बुद्धाब्द २१५२) ले लगभग 'अग्यिालंकार' नामक बग्मी भिक्षु ने की, (२) कच्चायनभेद-महाटीका , जिसके रचयिता उनम सिक्व (उनम शिक्ष) माने जाते हैं, जिनके काल का कुछ निश्चित पता नहीं है । 'कच्चायन-सार' पर स्वयं इसके रचयिता महायास ने एक टीका लिखी थी । गायगर के मतानुसार यह 'कच्चायनसार-पुराणटीका' थी जो आज उपलब्ध है। सिंहली विद्वान् सुभूति ने इसे किसी अज्ञात लेखक की रचना माना है। ४ 'कच्चायन-मार' की एक और टीका कच्चायनसार-अभिनवटीका' या 'मम्मोहविनामिनी' वर्मी भिक्षु सद्धम्मविलास के द्वारा लिखी गई । (१०) पन्द्रह्वीं शताब्दी के मध्य भाग में कच्चान-व्याकरण पर 'सद्दबिन्दु'. (शब्द-बिन्दु) नामक उपकारी ग्रन्थ वरमा में लिखा गया । 'सासनवंस' के वर्णनानुमार अरिमद्दन (अरिमर्दन-बरमा) का राजा क्यच्चा इसका रचयिता था। मभूति ने इम ग्रन्थ का निश्चित रचना-काल १४८१ ई० (बुद्धाब्द २०२५)
१. सुभूति : नाममाला, पृष्ठ ८३; मेबिल बोड : हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर
इन बरमा, पृष्ठ ३६ । २. पृष्ठ ७४ (जर्नल ऑव पालि टेक्स्ट सोसायटी १८८६ में सम्पादित ___संस्करण) ३. पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ५२ । ४. नाममाला, पृष्ठ ८४-८५ (भूमिका) ५. पृष्ठ ७६ (पालि टैक्स्ट सोसायटी का मेबिल बोड द्वारा सम्पादित संस्करण)