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________________ ( ५३६ ) ८ लोभ-मूलक, २ द्वेष-मूलक- और २ मोह-मूलक), १८ अहेतुक - चित्त ( जिनमें भी फिर अकुशल-विपाक, आठ कुशल- विपाक और ३ अहेतुक - चित्त) और २४ सहेतुक चित्त (जिनके भी फिर वेदनाविज्ञान और संस्कार के भेद से वर्गीकरण) । इतना ही नहीं, इन्हीं कामावचर भूमि में होने वाले चित्तों में फिर २३ विपाक चित्त, २० कुगल और अकुशल एवं ११ ११ क्रिया-चित्तों का विभाजन ! ऊपर निर्दिष्ट द्वितीय भूमि के चित्त अर्थात् रूपावचर चित्त के फिर १५ प्रकार, जिसमें ५ कुगल-चित्त, ५ विपाक - चित्त और पाँच क्रिया-चित्त । इसके बाद तृतीय भूमि के चित्त अर्थात् अरूपावचर - चित्त के बारह विभागों का निरूपण, जिनमे चार-कुशल-चित्त, चार विपाक-चिन और चार क्रिया-चित्त । अन्त में चतुर्थ भूमि के चिन अर्थात् लोकोत्तर चित्त के इसी प्रकार ८ भेद, जिनमें चार कुचल चित्त और चार विपाक चित्त । इस प्रकार कुल ५४ कामावचर, १५ रूपावचर.१२ अरूपाचार और लोकोत्तर चित्तों अर्थात् कुल ८९ प्रकार के चिनों की परिभाषाएँ, व्याख्याएँ, और 'कर्म' के स्वरूप के साथ उनके संबंध का निर्णय यह सव 'अभिधम्मन्थ संग्रह' की संख्याओं में भरने का प्रयत्न किया गया है । चित्त और चेतसिक धर्मो के इस निरूपण में कितनी सूक्ष्मता, कितनी विश्लेषणप्रियता 'अभिवम्मत्थसंग्रह' ने अभिधम्म का अनुगमन कर दिखाई है, इसे देखकर साधारण विद्यार्थी का साहस छूट जाता है । फिर भी 'अभिधम्मत्थसंग्रह' के महत्व का यह कुछ कम वड़ा साक्ष्य नही है कि अभिधम्मपिटक पर बुद्धीप जैसे आचार्य की अट्ठकथाएँ रहते हुए भी बौद्ध विद्यालयों में अभिधम्म का अध्ययन प्राय: इसी ग्रन्थ के द्वारा होता आया है और विशेषतः बरमा में तो इसके चारों ओर एक सहायक साहित्य की अटूट परम्परा ही १५ वीं शताब्दी से बनती चली आ रही है जिसका वर्णन हम ११०० ई० से वर्तमान समय तक के पालि के व्याख्यापरक साहित्य का विवरण देते समय अभी आठवें अध्याय में करेंगे । बुद्धघोष युग में अट्ठकथाओं और व्याख्यापरक साहित्य के अतिरिक्त वंग-संबंधी कई ग्रन्थ भी लिखे गये, और इसी प्रकार काव्य और व्याकरणसंबंधी पर्याप्त रचनाएं भी हुई। इनका विवरण हम अपनी योजना के अनुसार क्रमशः नवें और दसवें अध्यायों में करेंगे । 1
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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