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________________ ( ५०८ ) और अन्त में त्रिपिटक पर एक संक्षिप्त अट्ठकथा लिखने का उपक्रम किया, जिसे देख कर उनके गुरु महास्थविर रेवत ने उनसे कहा', "लंका से यहाँ भारत में केवल म्ल पालि-त्रिपिटक ही लाया गया है। अट्ठकथाएँ यहाँ नहीं हैं । विभिन्न आचार्यों को परम्पराएँ भी यहाँ उपलब्ध नहीं हैं। हाँ, लंका-दीप में महास्थविर महेन्द्र (महिन्द) द्वारा संगृहीत सिंहली भाषा में प्रामाणिक अट्ठकथाएँ सुरक्षित हैं। तुम वहाँ जाकर उनका श्रवण करो, और बाद में मागधी भाषा में उनका रूपान्तर करो, ताकि वे सब के लिये हितकारी हों।"२ इस प्रकार अपने गुरु से आज्ञा पाकर आचार्य बुद्धघोष लंकाधिपति महानाम के शासनकाल में लंका में गये। अनुराधपुर के महाविहार के महापधान नामक भवन में रह कर उन्होंने संघपाल नामक स्थविर से सिंहली अट्ठकथाओं और स्थविरवाद की परम्परा को सुना । बुद्धघोष को निश्चय हो गया कि धर्म-स्वामी (बुद्ध) का यही ठीक अभिप्राय है। तब उन्होंने महाविहार के भिक्ष-संघ से प्रार्थना की “मैं अट्ठकथाओं का (मागधी) रूपान्तर करना चाहता हूँ। मुझे अपनी पुस्तकों को देखने की अनुमति दें।" इस पर भिक्षुओं ने उन्हें दो गाथाएँ परीक्षा-स्वरूप व्याख्या - - - - - - - - - १. तत्थ आणोदयं नाम कत्वा पकरणं तदा। धम्मसंगणियाकासि कण्डं सो अट्ठसालिनि । परित्तट्ठकथं चेव कातुं आरभि बुद्धिमा। तं दिस्वा रेवतो थेरो इदं वचनं अब्रुवि॥ २. पालिमत्तं इधानीतं नत्थि अट्ठकथा इध। तथाचरियवादा च भिन्नरूपा न विज्जरे॥ सोहलट्ठकथा सुद्धा महिन्देन मतीमता। संगीतित्तयं आरूळ्हं सम्मासम्बुद्धदेसितं॥ कता सोहलभासाय सीहलेसु पवत्तति । तं तत्थ गन्त्वा सुत्वा त्वं मागवानं निरत्तिया। परिवत्तेहि सा होति सब्बलोकहितावहा ॥ ३. धम्मसा मिस्स एसो व अधिप्पायो ति निच्छिय ४. कातुं अट्ठकथं मम पोत्थके देथ ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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