________________
भी। किन्तु नियमतः ये प्रयोग नहीं पाये जाते । अतः जिस मागधी का निरूपण प्राकृत-वैयाकरण करते है, उसे पालि का आधार नहीं माना जा सकता । उसका विकास तो ,जैसा अभी कहा गया है, पालि के बाद हुआ है। पालि का आधार तो केवल वही मागधी या मगध की बोली हो सकती है जो मध्य-मंडल अर्थात् पश्चिम में उत्तर-कुरु से पूर्व में पाटलिपुत्र तक और उत्तर में श्रावस्ती से दक्षिण में अवन्ती तक फैले हुए प्रदेश की सामान्य सभ्य-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी और जिसका विकास अनेक कारणों से गौरव प्राप्त करने वाली मगध की भाषा से हुआ और अनेक कारणों से ही जिसमें नाना प्रदेशों की बोलियों का संमिश्रण हो गया, जिसका साक्ष आज हम उसके सुरक्षित रूप ‘पालि' में पाते हैं।
जिस प्रकार प्राकृत वैयाकरणों द्वारा विवेचित मागधी को पालि भापा का आधार नहीं माना जा सकता, उसी प्रकार जैन सत्रों की भापा अर्द्ध-मागधी या 'आर्ष' को भी उसका आधार स्वीकार नहीं किया जा सकता। उसका भी विकास पालि के वाद हुआ है । पच्छिम में शौरसनी और पूर्व में मागधी प्राकृत के बीच के क्षेत्र में जो भाषा बोली जाती थी, वह अपने मिश्रित स्वरूप के कारण 'अर्द्धमागधी कहलाती है। ध्वनि-समूह, शब्द-साधन और वाक्य-विचार की दृष्टि से पालि और अर्द्धमागधी में क्या समानताएँ या असमानताएं हैं, इसका विवेचन हम आगे पालि और प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन करते समय करेंगे । अभी लडर्स के उस मत का निर्देश करना है,जिसके अनुसार प्राचीन अर्द्धमागधी पालि भाषा का आधार है। लूडर्स का मत है कि मौलिक रूप में पालि त्रिपिटक प्राचीन अर्द्धमागधी भाषा में था और बाद में उसका अनुवाद पालि भाषा में, जो पच्छिमी वोली पर आश्रित थी, किया गया। अतः उनके मतानुसार आज त्रिपिटक में जो मागधी रूप दृष्टिगोचर होते हैं, वे प्राचीन अर्द्धमागधी के वे अवशिष्ट अंश मात्र है जो उसका पालि में अनुवाद करते समय रह गये थे' । लूडर्स का यह तर्क बिलकुल अनुमान पर आश्रित है । जिस प्राचीन अर्द्धमागधी को लूडर्स ने त्रिपिटक का मौलिक आधार माना है,उसके रूप का निर्णय करने के लिए सिवाय उनकी कल्पना के और कोई आधार नहीं है । जैसा कीथ ने ने कहा है, यह सिद्ध नहीं किया जा सकता कि लूडर्स द्वारा निर्मित या परिकल्पित प्राचीन अर्द्ध-मागधी का विकास
१. देखिये बुद्धिस्टिक स्टडीज, पृष्ठ ७३४; गायगरःपालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज,पृष्ठ
५; लाहाःहिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ २०-२१(भूमिका)